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परीक्षाओं से आमना-सामना

‘परीक्षा’ शब्द सामने आते ही न जाने क्यों परीक्षार्थी के मन में भय का एहसास होने लगता है। छात्र-छात्राओं की तो बात ही क्या, यदि वरिष्ठ और अनुभवी व्यक्ति को भी किसी परीक्षा जैसी स्थिति से दो-चार होना पड़े तो वह भी मन में घबराने लगता है। सम्भवत: इसका कारण यही है कि मनुष्य अपनी जाँच नहीं कराना चाहता, असफल हो जाने की सम्भावना का भय उसे आतंकित कर देता है। यहाँ तक कि कुछ लोगों का मन परीक्षा से बचने के उपाय के रूप में सचमुच ही शारीरिक रूप से उन्हें रोग का शिकार कर देता है, परीक्षा का बुखार एक यथार्थ बन जाता है।
परन्तु ‘परीक्षा से भय’ को मनुष्य की स्वाभाविक स्थिति नहीं कहा जा सकता, यह तो कमजोर मानसिकता का परिचायक है। स्वभावत: मनुष्य का जीवन तो चुनौतियों से भरा हुआ होता है। प्राणीमात्र को कदम-कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है; जिन्दगी हर कदम पर इम्तिहान लेती है। फिर उससे डरना क्या। यदि वास्तव में, कोई डरने की चीज है तो वह स्वयं डर है।
गहराई से देखें तो मानव-जीवन बड़ा लचीला है। वह टुण्ड्रा जैसे बर्फीले इलाकों में रह लेता है, रेगिस्तान में रह लेता है, बीहड़ जंगलों में रह लेता है। आज के नगर भी जंगलों से कम नहीं हैं। वह उनमें भी रह लेता है। इसके अतिरिक्त, दार्शनिक दृष्टि से यदि देखें तो मानव-जीवन नश्वर है, काल के निरन्तर प्रवाह में भी कुछ क्षणभंगुर है, ऐसी स्थिति में सफलता या असफलता, हार या जीत के क्या मायने हैं। सच्चाई व आनन्द तो हर परीक्षा का, हर कठिनाई का, पूरी सामथ्र्य और निष्ठा से सामना करने में निहित है। हमें खेल की भावना से हर परीक्षा का सामना करना चाहिए, क्योंकि जब अन्तिम निर्णायक देखते हैं तो यह नहीं देखते कि अमुक ने क्या खोया और क्या पाया, वरन् वे यही देखते हैं—व्यक्ति ने कठिनाइयों के सम्मुख जीवन कैसे जिया, कैसे उसने हँसते-हँसते अपने जीवन-ध्येय के प्रति समर्पण बनाए रखा। खेल की भावना से जीना ही मानव-जीवन की श्रेष्ठतम कला है।
परीक्षा वास्तव में क्या है? परीक्षा वह व्यवस्थित प्रयास है जिसके द्वारा छात्र-अर्जित ज्ञान अथवा उपलब्धि का मापन किया जाता है। इससे पता चलता है कि अध्ययन अथवा प्रशिक्षण के दौरान शिक्षार्थी ने कहाँ तक मानसिक कौशल अर्जित किया है।
परीक्षा के मामले से सफलतापूर्वक निपटने के लिए तीन चरणों में तैयारी की जानी चाहिए—

  • परीक्षा-केन्द्र में प्रवेश की तैयारी,
  • परीक्षा-हॉल में प्रवेश एवं प्रश्न-पत्र वाचन,
  • उत्तर लिखने की कला।

इन्हीं तीन बिन्दुओं पर क्रमवार कुछ महत्त्वपूर्ण बातें निम्नलिखित हैं—

1. परीक्षा-केन्द्र में प्रवेश की तैयारी

प्रारम्भ में ही हम यह कहना चाहेंगे कि परीक्षा के समीप अथवा परीक्षा के दिनों में अत्यधिक मेहनत नहीं की जानी चाहिए। आमतौर से विद्यार्थी परीक्षाओं के दिनों में अपने मस्तिष्क को अत्यधिक सामग्री से बोझिल कर लेते हैं, इसलिए परीक्षा खत्म होते ही वह सामग्री भी दिमाग में से साफ हो जाती है। यदि परीक्षा में अच्छे अंक लाने हैं तो मस्तिष्क का शान्त और स्थिर होना आवश्यक है। इसलिए परीक्षा दिवस की पूर्वसन्ध्या निश्चित ही किताबों में नहीं, वरन् प्रसन्नतादायक कार्यों में बितायी जानी चाहिए ताकि अगले दिन तरोताजा, शान्त और एकाग्र मन से परीक्षा-कार्य सम्पन्न किया जा सके।
परीक्षा-केन्द्र में प्रवेश पूर्ण तैयारी के साथ किया जाना चाहिए। उस तैयारी से सम्बन्धित प्रमुख बातें इस प्रकार हैं–

  • अपना प्रवेश-पत्र उचित समय पर विद्यालय से प्राप्त कर लें।
  • बोर्ड की परीक्षाओं के अन्तर्गत हर बार यही देखने में आता है कि अधिकांश परीक्षार्थी अपना अनुक्रमांक ही ठीक से नहीं लिख पाते। अपने अनुक्रमांक को अंकों तथा शब्दों में सही-सही रूप में लिखने का पूरा अभ्यास कीजिए। सन्देह होने पर अपने शिक्षक या अभिभावक की सहायता ले सकते हैं, किन्तु अनुक्रमांक लिखने में त्रुटि वांछनीय नहीं है। अंकों को या तो हिन्दी में लिखें या फिर अंगे्रजी लिपि में। बहुत-से बच्चे इन्हें मिश्रित लिपि में लिख देते हैं, जिससे भ्रम उत्पन्न हो जाता है। अपनी परीक्षा कॉपी में भी संख्याओं को कभी हिन्दी अथवा कभी अंगे्रजी में न लिखें। यह बिल्कुल गलत प्रक्रिया है जिसे आप ठीक समझते हैं, परन्तु इस प्रकार से आपका ठीक प्रश्न भी गलत हो जाता है जो आपकी असफलता का एक प्रमुख कारण बनता है। ऐसी गलती दोहराने पर परीक्षक द्वारा आपको शून्य अंक भी दिया जा सकता है। अत: ऐसी गलती भूलकर भी न करें। केवल आप हिन्दी में अथवा केवल अंगे्रजी में संख्याओं को लिखें।
  • रिक्त स्थान में संकेतांक, दिनांक, दिन आदि ठीक प्रकार से लिखने का अभ्यास पहले घर पर ही कर सकते हैं। संकेतांक आपको प्रश्न-पत्र से लिखना होता है।
  • अपने पेन, स्याही, रबर, पेन्सिल, स्केच पेन, परकार तथा जो भी उपकरण या वस्तु आप आवश्यक समझते हैं, पहले ही एक बॉक्स में रख लें। प्रवेश-पत्र रखना न भूलें।
  • पहले ही परीक्षा-केन्द्र पर जाकर अपना कक्ष और सीट देख आएँ।
  • परीक्षा के दिन आपको केन्द्र तक कैसे पहुँचना है, इसकी व्यवस्था सुनिश्चित कर लें। यदि आपको साइकिल या विक्की आदि से केन्द्र तक पहुँचना है, तो पहियों की हवा तथा मशीनरी ठीक से चैक करा लें।
  • प्रात:काल उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वयं को ताजा करें। शान्त एवं स्थिर चित्त से प्रभु का स्मरण करें और घर से चलने से पूर्व अपने परिवार के अग्रजनों के चरण-स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लें।
  • परीक्षा-केन्द्र के लिए उचित समय पर घर से निकलें। विलम्ब से चलने की अपेक्षा निर्धारित समय से पहले ही पहुँचना ज्यादा अच्छा है।
  • संंस्थागत विद्यार्थी विद्यालय की ड्रैस में परीक्षा केन्द्र पर पहुंचें। ड्रैस साफ-सुथरी तथा प्रेस की हुई हो।
  • परीक्षा-कक्ष में घुसने से पूर्व लघुशंका आदि से निवृत्त हो लें।
2. परीक्षा-कक्ष में प्रवेश-पत्र वाचन

परीक्षा प्रक्रिया का दूसरा महत्त्वपूर्ण चरण उस समय शुरू होता है जब परीक्षार्थी परीक्षा-कक्ष में अपनी निर्धारित सीट पर स्थान ग्रहण कर लेता है तथा उसे उत्तर-पुस्तिका प्राप्त हो जाती है। सबसे पहले उसे अच्छी तरह यह देख लेना चाहिए कि उसके आस-पास उसके डेस्क में कोई सामग्री तो नहीं जो उस दिन की परीक्षा से सम्बन्धित हो। यदि है तो उस सामग्री से तुरन्त छुटकारा पा लेना चाहिए, चाहे वह सामग्री कक्ष-निरीक्षक को दे दी जाए या उसे बाहर फेंक दिया जाए, अन्यथा परीक्षार्थी व्यर्थ ही अनुचित साधनों के प्रयोग से दोषारोपित किया जा सकता है। फिर उसे सावधनीपूर्वक उत्तर-पुस्तिका पर आवश्यक प्रविष्टियाँ अर्थात् रोल नं  आदि भर देनी चाहिए। एक बार पुन: जाँच कर लेनी चाहिए कि उसने सभी प्रविष्टियाँ सही रूप से भर दी हैं अथवा नहीं।
प्रश्न-पत्र मिलने पर परीक्षार्थी को उसे बहुत सावधानी एवं धैर्यपूर्वक पढ़ना चाहिए। अधिकांशत: प्रश्न-पत्र बनाने वाले परीक्षक प्रश्न-पत्र इस प्रकार तैयार करते हैं कि एक औसत विद्यार्थी के लिए भी उसमें इतने प्रश्न अवश्य हों कि वह सफलता के लिए निर्धारित न्यूनतम अंक लेकर परीक्षा में उत्तीर्ण हो सके। कुछ प्रश्न औसत से ऊपर कुशाग्रबुद्धि परीक्षार्थियों के लिए दिए गए होते हैं। अध्यापन-जीवन का हमारा लम्बा अनुभव बताता है कि प्रथम दृष्टतया कठिन-से-कठिन लगने वाले प्रश्न-पत्र में भी, यदि उसे दुबारा या तिबारा पढ़ा जाए, तो ऐसे प्रश्न अवश्य मिल जाएँगे जिन्हें औसत दर्जे का प्रत्येक परीक्षार्थी हल कर सकता है। इसलिए किसी भी दशा में पहली ही नजर में प्रश्न-पत्र से घबराना नहीं चाहिए और न ही हतोत्साहित होना चाहिए।

परीक्षार्थी के लिए आवश्यक है कि वह प्रश्नों का चयन सावधानीपूर्वक कर ले। इन चयनित प्रश्नों का क्रम पहले से तय कर लेना सुविधाजनक होगा अर्थात् सबसे पहले किस प्रश्न का उत्तर दिया जाएगा, किसका उत्तर उसके बाद।

तत्पश्चात्, प्रश्नों के चयन की बारी आती है। इससे पूर्व प्रश्न-पत्र में दिए गए परीक्षक के निर्देशों को ध्यान से पढ़ना चाहिए; जैसे– कुल कितने प्रश्न हल करने हैं, कौन-से प्रश्न अनिवार्य हैं, यदि प्रश्न-पत्र खण्डों में विभाजित है, तो प्रत्येक खण्ड से कितने प्रश्नों को हल करना जरूरी है आदि।
परीक्षार्थी के लिए आवश्यक है कि वह प्रश्नों का चयन सावधानीपूर्वक कर ले। इन चयनित प्रश्नों का क्रम पहले से तय कर लेना सुविधाजनक होगा अर्थात् सबसे पहले किस प्रश्न का उत्तर दिया जाएगा, किसका उत्तर उसके बाद। इसी प्रकार, क्रम निर्धारित कर लेना चाहिए। ऐसा करने से बाद में होने वाली हड़बड़ाहट या समय के व्यर्थ होने की सम्भावना से बचा जा सकता है।
प्रत्येक उत्तर लिखने से पहले पुन: प्रश्न को पढ़ना चाहिए और यह तय किया जाना चाहिए कि प्रश्न अपने विषय के सम्बन्ध में किन-किन बातों की अपेक्षा करता है। जिन बातों के उत्तर को माँगा गया है उन पर विस्तार से लिखा जाना जरूरी है। प्रश्न जिस टॉपिक से सम्बन्धित है उस पर जो कुछ हमें याद है उसे लिख देने से काम नहीं चलता, वह तो समय की बरबादी है। हमें तो वह ही सामग्री लिखनी है जिसकी माँग प्रश्न के द्वारा की गयी है। अधिकतर प्रश्नों में उत्तर-संकेत छुपे होते हैं; इसलिए प्रश्नों का ध्यान से पढ़ा जाना आवश्यक है।
सुविधा के लिए उत्तर-पुस्तिका के अन्तिम पृष्ठ को ‘रफ’ कार्य के लिए निर्धारित कर सकते हैं ताकि परीक्षा के उपरान्त उत्तर-पुस्तिका कक्ष-निरीक्षक को देने से पहले उसे काटा जा सके। उत्तर लिखने से पूर्व सम्बन्धित प्रश्न के प्रमुख बिन्दु इस रफ पृष्ठ पर लिखे जा सकते हैं ताकि भूल से कुछ छूट न जाए।

3. उत्तर लिखने की कला

प्राय: देखने में आता है कि परीक्षार्थी को प्रश्न भी समझ में आ जाता है और वह उसका उत्तर भी जानता है, किन्तु वह उत्तर में अपेक्षित सामग्री को सही ढंग से सँजोकर प्रस्तुत करना नहीं जानता। सचमुच ही, परीक्षा चाहे मौखिक हो या लिखित उत्तर देना एक कला है। यह अभ्यास से अर्जित की जाने वाली कला है। यहाँ हम कुछ वे मुख्य-मुख्य बातें दे रहे हैं जिनको ध्यान में रखकर परीक्षा में एक श्रेष्ठ उत्तर लिखा जा सकता है और अच्छे अंक प्राप्त किए जा सकते हैं–
(1) प्रत्येक प्रश्न अपने उत्तर में किन बातों की चर्चा चाहता है, वह स्वयं ही स्पष्ट कर देता है। यदि प्रश्न अंकों की दृष्टि से विभाजित है तो इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि प्रश्न के किस भाग के कितने अंक हैं। उसी के अनुसार हमें सामग्री प्रस्तुत करनी चाहिए। यदि किसी प्रश्न के दो भाग हैं और उसके कुल 10 अंक हैं जो भागों के बीच क्रमश: 3+7 वितरित हैं तो स्पष्ट है कि प्रथम भाग का उत्तर संक्षिप्त तथा स्पष्ट लिखा जाना चाहिए और दूसरे भाग का उत्तर विस्तार से दिया जाना चाहिए।
(2) प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लिखते समय आलोच्य विषय के बारे में स्पष्ट किन्तु छोटी भूमिका अवश्य लिखनी चाहिए, जो यह बता दे कि परीक्षार्थी ने प्रश्न अच्छी तरह समझ लिया है और वह उत्तर में क्या लिखने जा रहा है। प्रश्न में पूछे गए प्रमुख मुद्दों की चर्चा करने से पहले यदि सन्दर्भ के लिए, कुछ देना आवश्यक है तो संक्षेप में अवश्य दें, अन्यथा सीधे प्रमुख बिन्दुओं पर लिखा जाना चाहिए। इसी प्रकार, प्रश्न के अन्त में उत्तर का स्पष्ट निचोड़ या सार निष्कर्ष के रूप में अवश्य लिखना चाहिए। प्रश्न का प्रारम्भ और अन्त जितना अधिक प्रभावशाली होगा उतने ही अच्छे अंक प्राप्त होने की आशा की जा सकती है। इसका यह आशय कदापि नहीं कि बीच में कुछ भी अनर्गल या सन्दर्भ से परे लिखकर परीक्षक को धोखा दिया जा सकता है। वास्तव में, आपके परीक्षक को उत्तर-पुस्तिकाएँ जाँचने का इतना अनुभव हो चुका होता है कि पन्ने पलटते ही सबसे पहले उसकी दृष्टि वहीं जाती है जहाँ गलती होती है। आप उसे धोखा नहीं दे सकते। अत: उत्तर सटीक होना चाहिए। इसलिए कोई भी प्रयास परीक्षक को छलने का नहीं करना चाहिए। आपका हर झूठ-फरेब पकड़ा जाएगा और अन्त में नुकसान आपका ही होगा।

कई बार परीक्षार्थी उत्तर-पुस्तिका में अपने व्यक्तिगत जीवन की मुसीबत का रोना रोते हुए परीक्षक के नाम अनुनय भरा पत्र लिख देते हैं कि उन्हें पास अवश्य कर दिया जाए, जोकि एक ओछी हरकत है।

कई बार परीक्षार्थी उत्तर-पुस्तिका में अपने व्यक्तिगत जीवन की मुसीबत का रोना रोते हुए परीक्षक के नाम अनुनय भरा पत्र लिख देते हैं कि उन्हें पास अवश्य कर दिया जाए। कोई-कोई मूर्ख परीक्षार्थी अपील के साथ करेंसी नोट भी लगा देता है। ये सब बहुत ओछी हरकतें हैं जो परीक्षक को चिढ़ाती हैं। यदि परीक्षक चाहे तो परीक्षार्थी के पत्र को लाल रेखांकित करके उसकी परीक्षा-संगठन से शिकायत कर सकता है। ऐसी देशा में यह केस ‘अनुचित साधनों के प्रयोग’ की श्रेणी में रखा जा सकता है और परीक्षार्थी की पूरी परीक्षा ही निरस्त की जा सकती है। ऐसी व्यर्थ की बातों में कदापि नहीं पड़ना चाहिए। परीक्षार्थी की उपलब्धि का एकमात्र निर्धारक उसका उत्तर ही है, इसके अलावा और कुछ भी उसकी सहायता नहीं कर सकता।
(3) प्रश्न-पत्र में कुल जितने भी प्रश्न कराए गए हैं उन सभी का उत्तर देना और सन्तुलित रूप में देना आवश्यक है। मान लीजिए, किसी प्रश्न-पत्र में कोई से पाँच सवाल हल करने हैं, अत: परीक्षार्थीं को पाँच सवालों के सन्तुलित उत्तर देने चाहिए। न तो कोई प्रश्न छूटना चाहिए और न यह किया जाना चाहिए कि उनमें से तीन प्रश्नों के उत्तर बहुत लम्बे लिखे जाएँ और शेष दो प्रश्नों के उत्तर नाममात्र को घसीट दिए जाएँ। अच्छे-से-अच्छे उत्तर पर सीमा से ऊपर अंक नहीं दिए जा सकते। इसलिए अधिकतम अंक प्राप्त करने के लिए सभी निर्धारित प्रश्न किए जाने चाहिए। इसके लिए भी उचित होगा कि परीक्षार्थी प्रत्येक उत्तर के लिए समय का तर्कपूर्ण विभाजन कर ले और फिर नियत समय में ही प्रश्न का उत्तर समाप्त करे।
(4) प्रत्येक प्रश्न में ‘निर्देशक शब्द’ होता है, उसे ध्यान से पढ़कर उसी के अनुरूप उत्तर दिया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, हम कुछ बहु-प्रचलित निर्देशक शब्दों को ले सकते हैं; जैसे–

  • ‘परिभाषा दीजिए’ अथवा ‘परिभाषित कीजिए’–इसका आशय है कि सम्बन्धित शब्द/अवधारणा/वाक्यांश का अर्थ सटीक व न्यूनतम शब्दों में लिखना है। उस अवधारणा में जो भी विशिष्टताएँ निहित हैं, उनको भी स्पष्टतया बता देना चाहिए।
  • वर्णन कीजिए–यह निर्देशक शब्द बताता है कि पूछे गए विषय का सम्पूर्ण चित्रण करना है।
  • व्याख्या कीजिए–इसके अन्तर्गत विषय के सम्बन्ध में तर्क द्वारा पक्ष-विपक्ष की जाँच की जानी है, जिसके आधार पर विषय को स्पष्टतया प्रस्तुत करना है।
  • स्पष्ट कीजिए–इस शब्द का अर्थ है कि आलोच्य विषय के निहितार्थों को उनके कारण-कार्यों की पृष्ठभूमि में स्पष्ट करना है।
  • मूल्यांकन कीजिए–यहाँ परीक्षक विषय की वास्तविकता, सच्चाई, उपयोगिता अथवा महत्ता की जाँच कराना चाहता है। उसे स्पष्ट करते हुए कुछ सीमा तक निजी राय की भी अभिव्यक्ति की जा सकती है, परन्तु अपने मत की अभिव्यक्ति तभी करनी चाहिए जब वह पहले से दिए जा रहे तथ्यों के अनुरूप हो अथवा परीक्षार्थी उसे प्रमाणों द्वारा समर्थित कर सके।
  • आलोचना कीजिए–आलोचना के प्रश्न में तथ्यों, सिद्धान्तों अथवा कथनों की सत्यता, प्रामाणिकता अथवा गुणों की जाँच की जाती है और उस पर एक निर्णय की अपेक्षा की जाती है।
  • तुलना कीजिए–तुलना के प्रश्न में परीक्षार्थी से आशा की जाती है कि वह सम्बन्धित विषयों अथवा अवधारणाओं के मध्य समानताओं और भिन्नताओं दोनों को ही स्पष्ट करे।
  • अन्तर बताइए–इस निर्देशक शब्द से आशय यह है कि परीक्षार्थी को दिए गए विषयों के बीच भिन्नता को स्पष्ट करना है। इस प्रश्न को दो तरीकों से हल किया जा सकता है–एक, दोनों को एक तालिका में आमने-सामने रखकर उनके बीच भिन्नताएँ प्रदर्शित की जाएँ, दूसरे, भिन्नताओं के प्रमुख बिन्दुओं का शीर्षक देते हुए पूछे गये विषयों के बीच अन्तर क्रमवार स्पष्ट किया जाए। पहले तरीके से दूसरा तरीका अधिक श्रेष्ठ है।
  • उदाहरण दीजिए–इस निर्देशक शब्द द्वारा परीक्षार्थी से आशा की जाती है कि वह विषय को उपयुक्त रेखाचित्रों, वक्र रेखाओं अथवा ठोस उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करेगा।
  • पुष्टि कीजिए–यहाँ पर्याप्त तर्कों अथवा साक्ष्यों द्वारा किए गए निर्णय या कथन को प्रतिष्ठित अथवा स्थापित करना है।
  • सम्बन्ध स्थापित कीजिए–ऐसे प्रश्नों में पूछे गए विषयों के बीच अन्तर-सम्बन्ध को स्पष्ट किया जाना चाहिए कि वे कैसे एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं अथवा किस प्रकार वे एक-दूसरे के विरोधी हैं? उनके सम्बन्ध परस्पर विरोधी, पूरक या सहयोगी हो सकते हैं–उन्हें स्पष्ट किया जाना चाहिए।
  • रूपरेखा दीजिए–इसका आशय है कि परीक्षार्थी को विषय के सम्बन्ध में सभी प्रमुख विशेषताओं अथवा सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवरण देना है। इन प्रमुख बिन्दुओं को विस्तार से लिखने की आवश्यकता नहीं है।
  • समीक्षा कीजिए–समीक्षा से तात्पर्य यह है कि परीक्षार्थी को विषय के बारे में सिद्धान्तों, विचारधाराओं व प्रयोगों का आलोचनात्मक सर्वेक्षण करना है।
  • अनुरेखण कीजिए/पता लगाइए/विकास का वर्णन कीजिये–यह भी रूपरेखा प्रस्तुत करने जैसा ही निर्देशक शब्द है। बस अन्तर इतना है कि यहाँ सम्बन्धित विषय के उद्गम अथवा उत्पत्ति से लेकर आज तक के विकास क्रम की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत करनी है।
  • संक्षेप में बताइए–इसका मतलब है कि प्रश्न में पूछे गए विषय से सम्बन्धित सभी प्रमुख आयामों को प्रस्तुत करना है, लेकिन यह प्रस्तुतीकरण संक्षिप्त होना चाहिए। किसी भी बिन्दु के सम्बन्ध में विस्तार में जाने या उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं है।

उपर्युक्त विवरण स्पष्ट करता है कि प्रश्न में दिए गए ‘निर्देशक शब्द’ को ध्यान से पढ़कर, उसी के अनुसार उत्तर लिखना परीक्षा में अधिकतम अंक पाने की कुंजी है।
(5)
 आजकल प्राय: सभी परीक्षाओं में वस्तुनिष्ठ प्रश्न पूछे जाते हैं। ये प्रश्न वे हैं जिनमें परीक्षार्थी को अपनी तरफ से कोई राय या तर्क नहीं लिखना है। इन प्रश्नों के उत्तर तथ्यात्मक होते हैं। ऐसे प्रश्न कई रूपों में हो सकते हैं; जैसे–सही या गलत, बहुविकल्पीय उत्तर व रिक्त स्थानों की पूर्ति आदि। इस भाँति प्राय: प्रश्नों के सम्भावित उत्तर दिए गए होते हैं। परीक्षार्थी को सही उत्तर पर  का निशान लगाना होता है अथवा रिक्त स्थान की पूर्ति करनी होती है। ऐसे प्रश्न संख्या में ज्यादा होते हैं। इसलिए ऐसे प्रश्न-पत्र को हल करने में समय का बहुत महत्त्व है। अत: परीक्षार्थी को प्रश्न जल्दी-जल्दी पढ़ने चाहिए और जिन प्रश्नों का उत्तर उसे आता है पहले उन्हें मार्क कर देना चाहिए एवं जिनका उत्तर नहीं आता उनको बाद में हल करना चाहिए। प्रथम, तीर-तुक्का यानी अन्दाजा लगाने पर अधिक भरोसा नहीं करना चाहिए। वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर पहले से ही निश्चित हैं। अत: अँधेरे में तीर फेंकने से अधिक लाभ होने की आशा नहीं है। वास्तव में ऐसे प्रश्नों को वे ही विद्यार्थी अधिक सफलतापूर्वक हल कर सकते हैं जिन्होंने विषय का विस्तृत एवं गहराई से अध्ययन किया हो। दूसरी ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसी-किसी वस्तुनिष्ठ परीक्षा में यह नियम भी होता है कि गलत उत्तरों पर ऋणात्मक अंक प्रदान किए जाते हैं। ऐसी परीक्षाओं में कुल प्राप्तांकों में से ऋणात्मक अंक घटाए जाते हैं। ऐसी परीक्षाओं में वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को हल करते समय अनुमान से बिल्कुल काम नहीं लेना चाहिए। जिन प्रश्नों के उत्तर आते हैं उन्हीं को हल करना श्रेयस्कर होता है।
(6) कई प्रश्न-पत्रों में अतिलघु, लघु और निबन्धात्मक प्रश्न पूछे जाते हैं। ऐसे प्रश्नों में अपेक्षित उत्तर-सीमा का पालन करना आवश्यक है। प्राय: अतिलघु प्रश्नों का उत्तर सीधे और स्पष्ट एक ही वाक्य या शब्द में दिया जाना चाहिए। लघु प्रश्नों का उत्तर लगभग दस वाक्यों अर्थात् सौ शब्दों में दिया जा सकता है, जबकि निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर लगभग 50० वाक्यों अथवा 300-400 शब्दों में दिए जाने चाहिए।
(7) बहुत-से विद्यार्थी यह समझते हैं कि ज्यादा लम्बे उत्तर लिखने या अधिक कॉपियाँ भरने में अधिक अंक मिलेंगे, यह भ्रमपूर्ण है। आज किसी के भी पास फालतू समय नहीं है। परीक्षक भी इसका अपवाद नहीं है। इसलिए उत्तर सटीक होने चाहिए। ऐसा करने से समय की बचत होगी और सभी प्रश्न हल किए जा सकेंगे।
(8) प्रश्नों-पत्रों में ‘संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए’ वाले प्रश्न भी होते हैं, उनमें इस प्रश्न को हल करने को प्राथमिकता दी जा सकती है, क्योंकि टिप्पणियों के उत्तर संक्षिप्त होते हैं और उनमें अंकों का विभाजन होने से परीक्षार्थी को इस प्रश्न पर अच्छे अंक प्राप्त हो जाते हैं।
(9) कुछ परीक्षार्थी उत्तर-पुस्तिका में जो प्रश्न उन्होंने सबसे पहले हल किया उसे ‘उत्तर सं० 1’ लिख देते हैं, चाहे वह प्रश्न-पत्र में दिए गए पाँचवें सवाल का उत्तर हो। ऐसा करना गलत है। प्रश्न-पत्र के प्रश्नों के क्रम को ही उत्तर-पुस्तिका में उत्तर संख्या के रूप में लिखा जाना चाहिए, अन्यथा परीक्षक को हर प्रश्न में आपके द्वारा दी गई क्रमसंख्या को काटकर उस पर सही संख्या लिखनी पड़ेगी। इससे परीक्षक को परेशानी होगी, परीक्षार्थी की छवि खराब होगी और परिणाम भी उसी के अहित में होगा।
(10) परीक्षार्थी को कुछ समय उत्तर-पुस्तिका के पुनरावलोकन के लिए भी बचा लेना चाहिए। उत्तर-पुस्तिका को निरीक्षक को सौंपने से पहले अपने उत्तरों को दुबारा देख लेना चाहिए और भूल-सुधार कर लेना चाहिए। इससे यह जाँच भी हो जाती है कि पूरे प्रश्न कर लिए गए हैं और कुछ महत्त्वपूर्ण अंश छूट तो नहीं गया है।
हमें आशा है कि परीक्षाओं की समुचित तैयारी, प्रश्नों के चयन में चतुराई और उत्तर लिखने के कौशल से सम्पन्न परीक्षार्थी के लिए परीक्षाएँ किसी अभेद्य चक्रव्यूह की रचना नहीं कर सकेंगी। वह निश्चित ही सफलतापूर्वक उनका सामना कर सकेगा।

सार-संक्षेप

आइए, परीक्षा-सम्बन्धी प्रमुख बिन्दुओं को संक्षेप में एक बार पुन: दोहरा लें–

  • परीक्षा भवन में पहुंचकर सर्वप्रथम अपनी जेब, डेस्क और कुर्सी की तलाशी लेकर यह सुनिश्चित कर लें कि उसमें कोई कागज या पुर्जा या आपत्तिजनक सामग्री तो नहीं है। यदि ऐसी कोई चीज दिखाई पड़े तो सामग्री को बाहर फेंक आएँ।
  • उत्तर-पुस्तिका की रिक्तियों को ध्यानपूर्वक पढ़कर, साफ-साफ लेख से भरें। कोई शंका हो तो पर्यवेक्षक से पूछकर समाधान कर लें।
  • प्रश्न-पत्र मिलने से पूर्व ही उत्तर-पुस्तिका के प्रत्येक पृष्ठ पर सुन्दर तथा आकर्षक हाशिया खींच लें।

 

परीक्षाकाल में बच्चों के साथ अत्यन्त ही सहानुभूति तथा प्रेम का व्यवहार करें। उन्हें किसी भी प्रकार तनाव न दें। उनके खान-पान का पर्याप्त रूप से ध्यान रखें।

  • प्रश्न-पत्र को ध्यानपूर्वक कम-से-कम दो बार पढ़ें। जो प्रश्न याद किए हुए आए हों उन पर टिककर लें।
  • यदि याद किए हुए प्रश्न सन्तोषजनक संख्या में दिखाई न पड़ रहे हों तो घबराने या हड़बड़ाने की जरूरत नहीं है। धैर्य बनाए रखें और शान्त भाव से कण्ठस्थ प्रश्नों से ही शुरुआत कर दें।
  • जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते जाएँगे वैसे-वैसे ही शनै:-शनै: आपको महसूस होगा कि आप अधिकांश प्रश्न हल कर सकते हैं। अक्सर प्रश्न वही होते हैं जिन्हें आपने पहले से तैयार किया है, किन्तु परीक्षक के प्रश्न पूछने का तरीका भिन्न हो सकता है, इसलिए भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • जो प्रश्न कठिन महसूस हो रहे हों अथवा आप समझते हैं कि इन्हें आप नहीं कर पाएँगे, तो उन्हें बाद के लिए छोड़ दें।
  • सम्पूर्ण समयावधि को प्रश्नों की संख्या के हिसाब से विभाजित कर लें। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लिखते समय उसके लिए निर्धारित समय ही व्यय करें। आवश्यकता से अधिक समय देने पर अन्य प्रश्नों का समय छिन जायेगा।
  • अनुभव में आता है कि बहुधा विद्यार्थी पहले प्रश्न का उत्तर लिखने में आवश्यकता से बहुत अधिक समय खर्च कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अन्य प्रश्नों का उत्तर लिखने के लिए समय काफी कम रह जाता है। कभी-कभी तो ऐसा करने से महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर भी छूट जाता है। अत: इस बात का ध्यान रखें।
  • सच तो यह है कि प्रश्नों का उत्तर लिखते समय परीक्षार्थी प्राप्तांकों के गणित से अनभिज्ञ रहता है। परीक्षार्थी को यह ध्यान नहीं रहता कि एक ही प्रश्न का अत्यधिक विस्तार से उत्तर लिखकर कुल अंकों में उतनी अभिवृद्धि सम्भव नहीं होती जितनी कि दूसरे प्रश्न हल न कर पाने की वजह से हानि हो जाती है। इसलिए प्रत्येक प्रश्न को उसके लिए उचित समय ही देना चाहिए।
  • यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि प्रत्येक प्रश्न-पत्र से सम्बन्धित निर्देशों में अलग-अलग प्रकार के प्रश्नों के अंक पूर्वनिर्धारित होते हैं। विस्तृत उत्तरीय, लघु उत्तरीय, अतिलघु उत्तरीय और बहुविकल्पीय प्रश्नों के अंक सुस्पष्ट रहते हैं। इन्हीं के आधार पर उत्तर लिखे जाने चाहिए। परीक्षार्थी को विषय की तैयारी करते समय तथा परीक्षा देते समय यह बात भली प्रकार ध्यान में रखनी चाहिए।
  • विज्ञान एवं गणित के विद्यार्थी इस बात को पहले से सुनिश्चित कर लें कि उन्हें किस पृष्ठ पर रफ कार्य करना है और किस पृष्ठ पर उत्तर लिखना है। यों ही लिखते हुए न चले जाएँ।
  • उत्तर-पुस्तिका में प्रश्नों का उत्तर लिखते समय लाल रंग का प्रयोग कहीं भी न किया जाए। स्केच पेन भी लाल रंग के अतिरिक्त अन्य रंगों के ही हों। शीर्षकों को अपनी रुचि के अनुसार केन्द्र या साइड में स्थान दें और रेखांकित अवश्य कर दें।
  • प्रश्नों के अन्तर्गत उद्धरण लिखते समय उन्हें इन्वर्टेड कोमॉज (‘‘…’’) के बीच में स्थान दें और रेखांकित कर दें।
  • प्रश्न-पत्र को इस प्रकार समाप्त करें ताकि बाद में लगभग पाँच मिनट का समय दोहराने के लिए मिल सके।
  • कार्यसमाप्ति के पश्चात् सबसे बाद में अपना अनुक्रमांक अवश्य लिख दें।
  • संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि परीक्षा में उच्च श्रेणी की उपलब्धि भाग्य या इत्तफाक या संयोग का मामला नहीं है, यह तो उद्देश्य एवं सुनियोजित परिश्रम और अभ्यास का विषय है। हमने परीक्षा के चक्रव्यूह में प्रवेश, भेदने और सफल निकासी के कुछ मार्गदर्शक बिन्दुओं को रेखांकित करने का प्रयास किया है। हमें आशा है कि इनका लाभ उठाते हुए परीक्षार्थी इस चक्रव्यूह को भेद, विजयश्री का वरण कर सकेंगे। सच तो यह है कि परीक्षा कोई चक्रव्यूह है ही नहीं, यह तो मानव-जीवन की स्वाभाविकता है, अनिवार्य पथ है।
4. अभिभावकों का दायित्व
  • परीक्षा की तैयारी की छुट्टियों के साथ ही छात्र-छात्राएँ अपने स्वूâल-कॉलेजों के वातावरण से दूर हो जाते हैं। अपने शिक्षक-जनों से भी उनकी भेंट बहुत कम ही होती है, प्राय: न के बराबर, ऐसी दशा में परीक्षार्थी की श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए अभिभावकों पर भारी दायित्व आ पड़ता है। निश्चय ही, अभिभावक अपने इस दायित्व से बच नहीं सकते। अपने पालितों के उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें चाहिए कि परीक्षार्थियों को अतिउत्तम पथ-प्रदर्शन प्रदान करें।
  • परीक्षाकाल में बच्चों के साथ अत्यन्त ही सहानुभूति तथा प्रेम का व्यवहार करें। उन्हें किसी भी प्रकार तनाव न दें। उनके खान-पान का पर्याप्त रूप से ध्यान रखें। उन्हें कब सोना है और कब जागना है–इस बात को ध्यानावस्थित रखते हुए उनकी मदद करें। सुबह को जगाने में उनकी सहायता करें। चाय-नाश्ता आदि उनकी सुविधानुसार सुलभ करा दें।
  • यह वह समय है जब कि बच्चों को सर्वाधिक मानसिक अवलम्बन की आवश्यकता होती है। अभिभावकों को अपने व्यस्ततम कार्य व्यापार के बीच से भी बच्चों के लिए समय निकालना चाहिए। उनके सामने घर-परिवार की समस्याएँ न रखिए। उनकी समस्याएँ पूछिए और उन्हें पहली प्राथमिकता के आधार पर हल करने का प्रयास करें। उनकी उलझनों में उन्हें धीरज बँधाएँ और उनके प्रशंसनीय कार्यों के लिए शाबासी दें तथा उनकी पीठ थपथपाएँ। जब वे पेपर देकर आएँ, उनसे प्यार से पूछिए कि आज उनका पेपर वैâसा रहा, अगला पेपर किस विषय का है और उसके लिए तैयारी कैसी है? बच्चे का कोई पेपर ठीक न गया हो तो उसे डाँटकर मायूस या निराश न करें। उसे अगले पेपर में इसकी क्षतिपूर्ति के लिए प्रेरित करें। आप महसूस करेंगे कि आपके मधुर सम्भाषण, प्रिय व्यवहार तथा अभिप्रेरणा के स्वर परीक्षा की इन घड़ियों में बच्चों के लिए वरदान बन जाएँगे।

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