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गणित सीखने-सिखाने के गुरुमंत्र

गणितीय प्रश्नों के स्वरूपों के बारे में जानकारी देकर प्रश्नों की अक्षरअंश व्याख्या करेंंगे, तभी विद्यार्थी प्रश्नों को हल करने को उत्सुक होंगे।

विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए सन्तुलित व पौष्टिक भोजन में अनुशासन, समयबद्ध व्यायाम व प्राणायाम के साथ-साथ गणित विषय का अपना विशेष महत्त्व है। गणित हमारी तार्किक क्षमता, सोचने की शक्ति, बौद्धिक स्तर, एकाग्रता, दूरदर्शिता आदि को बढ़ाते हुए मानसिक विकास को तीव्र गति प्रदान करता है। तभी तो लगभग सभी सरकारी/अद्र्धसरकारी सेवाओं की प्रतियोगिता परीक्षाओं में गणितीय आधारित एनालॉजीस, लॉजिक, कोडिंग-डिकोडिंग, सेंस, पजेल्स, रीजनिंग, इंटरप्रेटेशन, इंटरफ्रेंस, अंकीय क्षमता तथा गणितीय संक्रियाएं आदि टॉपिक्स पर प्रश्न सम्मिलित किये जाते हैं। गणित विषय की एक विशेषता है कि जितना उससे दूर रहोगे, वह आपसे तीव्र गति से दूर भागेगा तथा जितनी इससे मित्रता करोगे, वह आपसे अधिक घनिष्ट होगा। यह सही है कि छात्र-छात्राओं से जब सवाल हल होते जाते हैं तो उनका मन और अधिक प्रश्नों को हल करने का करता है, परन्तु जब प्रश्न हल नहीं होते तो विद्यार्थियों का मन विमुख सा हो जाता है।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली Tablet, Mobile, Laptop आदि के रुप में Computer आधारित होती जा रही है। शिक्षा सम्बन्धी अनेक सरकारी/गैर सरकारी Android App आपके Smart Phone (यदि उपलब्ध है) में इण्टरनेट का प्रयोग करके Google अथवा Playstore आदि से आसानी से install हो जाते हैं। मन की दशा बदलने के लिए जो विद्यार्थी smart phone (mobile) का सहारा लेते हैं, उन्हें मैं Vedanta, e-pathshala, NCERT “Books, BYJU’s, Extramarks, Unacademy, Lurningo, Photomath जैसी गणित सम्बन्धी Learning App अपने Smart Phone में प्रयोग करने का मैत्रीपूर्ण सुझाव देता हूँ।

विकासशील मनुष्य के रूप में हमारी सोच व कार्य विद्यार्थी जीवन को बेहतर बनाने के लिए किये जाने चाहिए। गणित विषय सम्बन्धी मंत्र /कार्य निम्नलिखित हो सकते हैं—

विद्यार्थी सम्बन्धी कार्य/मंत्र-

  • अपने विषय को कक्षा में पढ़ाये जाने से पहले स्वपाठन की आदत बनायें।
  • पढ़ते समय अपनी कक्षा में समस्यागत /शंकागत प्रश्नों को अपने शिक्षक से पूछने का संकोच न करें।
  • पढ़ते समय एकाग्रता बनायें।
  • हल उदाहरणों को स्वयं समझें, कई बार पढ़ने (हल करने) पर नहीं समझ आने की स्थिति में अपने सहपाठी से विचार-विमर्श कर हल निकालने का प्रयास करें अन्यथा अन्त में अपने शिक्षक से समझ लें।
  • अपने सहपाठी को गणित समझाने के अवसर की तलाश करें क्योंकि जो अंश आपने किसी को समझाया है, वह आप कभी नहीं भूलेंगे।
  • किसी छात्र की प्रश्न हल करने की तीव्रता से अपने को हतोत्साहित न होने दें।
  • रोजाना समयबद्ध गणित विषय के कार्य को लिखित रूप में किया जाना चाहिए।
  • परीक्षा से पहले प्रश्नों को इस तरह तैयार किया जाये कि सिर्पâ प्रश्न को देखकर ही परीक्षार्थी यह निश्चय कर ले कि अमुक प्रश्न इस तरह हल होगा। इस हेतु कुछ भाग रटा भी जा सकता है।
  • मोबाइल एप का प्रयोग करके विद्यार्थी अधिक पाठ्य सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न, मॉडल टेस्ट पेपर, विभिन्न विधियाँ सीखकर एकत्रित कर सकते हैं जो निश्चित ही परीक्षा में उपयोगी होगी।

अभिभावकों व माता-पिता से अपेक्षा—

  • बच्चों के प्राप्तांक पर ज्यादा ध्यान नहीं देकर बच्चे का सृजनात्मक विश्लेषण कर उसके अन्दर छिपी प्रतिभा/कला के अनुसार बच्चे को उन्नति करने का अवसर दें। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा में विद्यार्थी ने कम अंक अर्जित किये परन्तु उच्च शिक्षा व प्रतियोगिता परीक्षाओं में श्रेष्ठ प्रदर्शन करके अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त की।
  • कम पठन-पाठन करने वाले बच्चों को पढ़ाई करने के लिए सीधे न कहकर पढ़ाई से होने वाले लाभ व पढ़ाई नहीं करने से होने वाली हानि से बच्चे को अवगत व जाग्रत करेंगें।
  • अपने बच्चे की आलोचना नहीं करेंगे और न ही दूसरे बच्चे से तुलना करके बच्चे को उसकी न्यूनताएँ गिनवायेंगे, बल्कि बगैर तुलना किये बच्चे को उसकी न्यूनताओं को दूर करने हेतु उसे मैत्रीपूर्ण सुझाव देंगे व उसकी उन्नति हेतु प्रेरित करेंगे।
  • स्वावलम्बी बनने का दबाव नहीं डालेंगे बल्कि उसे प्रोत्साहित करेंगे।
  • शैक्षिक स्तर की किसी भी प्रतियोगिता में सफल होने पर बच्चे को प्रोत्साहन देंगे।
  • यथासंभव कक्षा 9 या 10 या 11 अथवा 12 से ही प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी वाली मासिक पत्रिकाओं जैसे प्रतियोगिता दर्पण, कॉम्पिटिशन सक्सेस रिव्यू आदि को पढ़ने हेतु प्रेरित करेंगे।
  • बच्चे की अनुशासित दिनचर्या व उत्तम स्वास्थ्य पर निरन्तर ध्यान देंगे।

सामाजिक मित्रगण व रिश्तेदारों से अपेक्षा—

  • बच्चे की वर्णनात्मक तुलना अपने बच्चे से अथवा अन्य दूसरे बच्चों से नहीं करेंगे।
  • अधिक अंक अर्जित करने वाले अथवा श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले बच्चे की इतनी प्रशंसा भी न की जाये जिससे बच्चों को अति आत्मविश्वासी होने का जोखिम उत्पन्न हो।

स्कूल प्रबन्धन से अपेक्षा—

  • छात्र-छात्राओं को उनकी गणित में रुचि होने पर ही गणित विषय में प्रवेश की अनुमति देंगे।
  • पाठ्यक्रम शीघ्र पूर्ण करने का दबाव अपने शिक्षकों/शिक्षकाओं पर नहीं बनायेंगे।

शिक्षक/शिक्षिकाओं से अपेक्षा—

शिक्षकगण किसी भी देश के राष्ट्र निर्माता होते हैं। अत: एक शिक्षक से गणित के अध्यापन हेतु निम्नांकित अपेक्षा की जाती है—

  • गणित के किसी भी अध्याय को पढ़ाने से पहले विद्यार्थियों को उस अध्याय को स्वपठन करने के लिए प्रेरित करेंगे।
  • गणित विषय को बलपूर्वक समझाना असंभव है व सम्पूर्ण पाठ्य-सामग्री को रटा नहीं जा सकता। अत: गणित में अभिरुचि जाग्रत करने तथा गणितीय शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए एक अध्यापक से आसान व मनोरंजक शैली का प्रयोग करके दैनिक जीवन में उपयोगिता बताते हुए, टॉपिक को समझाने की अपेक्षा की जाती है।
  • गणित के शिक्षकों/शिक्षिकाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने लेखन को कम प्रयोग करेंगे तथा विद्यार्थियों से स्वलेखन को ज्यादा प्रयोग करायेंगे। अत: गणित के आदर्श प्रश्नों को छोड़कर किसी प्रश्न का सम्पूर्ण हल नहीं लिखेंगे बल्कि हल का कुछ अंश लिखकर बाकी अंश छात्र/छात्रा को उनके लिखने के लिए निर्देशित करेंगे। तत्पश्चात् उसे जाँचेंगे भी।
  • गणितीय प्रश्नों के स्वरुपों के बारे में जानकारी देकर प्रश्नों की अक्षरअंश व्याख्या करेंंगे, तभी विद्यार्थी प्रश्नों को हल करने को उत्सुक होंगे।
  • प्रत्येक टॉपिक की विषय वस्तु (क्यों, कहाँ, कैसे) को समझाकर ही टॉपिक के सार की व्याख्या करेंगे।
  • प्रत्येक अध्याय को लिखित में वार्तालाप कर, सर्वप्रथम प्रश्नावली से पहले के उदाहरण हल करने के लिए छात्रों/छात्राओं को निर्देशित करेंगे।
  • गणितीय सूत्रों को कम से कम संख्या में याद करने को निर्देशित करेंगे वो भी रचनात्मक शैली में। यदि बिना सूत्र का प्रयोग किये प्रश्न हल हो सके तो अवश्य प्रेरित करेंगे। आज की प्रतियोगिता भरी शिक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत सूत्र आधारित प्रश्न नहीं के बराबर सम्मलित होते हैं।
  • प्रश्नावली में से उन प्रश्नों को छाँटकर प्रतिदर्श रुप में छात्रों के समक्ष हल किये जायेंगे जिनके हल होने से अन्य कई प्रश्नों को हल करने में छात्रों को सहायता मिले।
  • प्रतिदर्शरूपी प्रश्नों के हल को इस तरह से लिखा जाना चाहिए जिससे यदि छात्र हल करना भूल भी जायें तो हल पढ़कर बिना अध्यापक की सहायता से छात्र को पुन: याद आ जाये।
  • कोशिश की जाये कि प्रश्नों-उत्तरों को समझाने में यथासंभव चित्रों का प्रयोग हो।
  • कक्षा में बोर्ड पर विद्यार्थियों को टॉपिक/प्रश्न-उत्तर की व्याख्या /समझाने हेतु आमन्त्रित करेंगे।
  • कभी-कभी जान-बूझकर बच्चों को ऐसा अहसास कराया जाना चाहिए जैसे बच्चा प्रश्न का हल जानता हो।

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