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प्रभावी विज्ञान विषय हेतु अभिनव शैक्षिक विधियाँ एवं युक्तियाँ

21वीं सदी के बच्चों को विज्ञान शिक्षण हेतु शिक्षक विभिन्न प्रकार की विधियों एवं युक्तियों का प्रयोग करते हैं। अनेक युक्तियाँ किसी एक विधि का हिस्सा हो सकती हैं। विज्ञान हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। अत: ‘करके सीखो विधि’ को एन०सी०ई०आर०टी०, सी०बी०एस०ई० समेत अनेक शैक्षिक बोर्ड प्राथमिकता देते हैं। विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों को समझकर उचित विधि को अपनाना ही श्रेयस्कर होगा। अत: पहले विज्ञान शिक्षण के विशिष्ट उद्देश्यों को समझना आवश्यक है।

विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य

विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य निम्न प्रकार हो सकते हैं—

  • विज्ञान से संबंधित तथ्यों, सिद्धान्तों तथा विधियों का ज्ञान प्राप्त करना।
  • वैज्ञानिक विचारों एवं सम्बन्धों को समझकर अपनी भाषा में व्यक्त करना, तुलनात्मक अध्ययन करना तथा कारण-प्रभाव के सम्बन्ध को समझना।
  • छात्रों में चार्ट एवं चित्र बनाने और उनके प्रयोग करने का कौशल उत्पन्न करना ताकि वे पर्यावरण से सम्बन्धित तथ्यों तथा वस्तुओं के कुशलतापूर्वक उपयोग करने का कौशल प्राप्त कर सकें।
  • अंधविश्वासों और पूर्वाग्रहों को वैज्ञानिक विधि से दूर करने में सहायता करना।

विज्ञान शिक्षण की विधियाँ

1. प्रयोग प्रदर्शन विधि—इस विधि का प्रयोग प्राथमिक स्तर के बच्चों को भौतिक तथा जैविक पर्यावरण अध्ययन-विषय के शिक्षण हेतु किया जाता है। इन पाठों के अन्तर्गत आए प्रयोग प्रदर्शन को स्वयं करके बच्चों को दिखाना होता है। छात्रों को यथासंभव प्रयोग करने तथा निरीक्षण करने का अवसर मिलना चाहिए। इस विधि से शिक्षण कराने पर करके सीखने के गुण का विकास होता है।इस विधि की कुछ विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं—

  • यह विधि छात्रों को वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण प्रदान करती है।
  • इस विधि के अन्तर्गत छात्र सक्रिय रहते हैं तथा प्रश्नोत्तरों के माध्यम से पाठ का विकास होता है।
  • इस विधि से बच्चों की मानसिक तथा निरीक्षण शक्ति का विकास होता है।
  • विषयवस्तु सरल, सरस, बोधगम्य तथा स्थायी बन जाती है।
  • प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों को छात्र निरीक्षण कर विश्लेषण करना सीख जाते हैं।
  • छात्रों की सृजनात्मकता तथा सोचने की शक्ति का विकास होता है।

प्रयोग प्रदर्शन विधि का प्रयोग प्रभावी बनाने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं—

  • प्रयोग प्रदर्शन इस तरह से किया जाए कि सभी बच्चे उसे देख सकें।
  • प्रयोग को शुरू करने से पहले सम्बन्धित उपकरण एवं रासायनिक पदार्थ एक जगह उपलब्ध होने चाहिए।
  • प्रदर्शन से पहले शिक्षक को एक बार प्रयोग स्वयं करके देख लेना चाहिए।
  • प्रयोग करने की सुविधा हरएक छात्र को मिल सके, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • प्रयोग कराते समय शिक्षक का छात्रों को लगातार मार्गदर्शन करना चाहिए।

2. प्रायोजना विधि/प्रोजेक्ट विधि : प्रायोजना वह सहृदय सौद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है। दूसरे शब्दों में, प्रोजेक्ट एक समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक स्थिति में पूरा किया जाता है। इस विधि में कोई कार्य छात्रों के समक्ष समस्या के रूप में प्रस्तुत कर उसे सुलझाने का दायित्व छात्रों को ही दिया जाता है। समस्या का चुनाव विषय-सम्बन्धित होता है और प्रायोजना का कार्यक्रम बनवाकर शिक्षक उसे छात्रों द्वारा पूर्ण करवाता है।
इस विधि के मुख्य गुण इस प्रकार हैं—

  • यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त पर आधारित होने के कारण बच्चों को स्वतन्त्रापूर्वक सोचने-विचारने, निरीक्षण करने, कार्य करने और निर्णय लेने का अवसर मिलता है।
  • बच्चों में सामाजिकता का विकास होता है।
  • करके सीखने के कारण बच्चों का ज्ञान स्थायी होता है।
  • प्रायोजना का चुनाव करते समय छात्रों की रुचियों, क्षमताओं और मनोभावों को ध्यान में रखना होता है।
  • इस विधि को प्रशिक्षित शिक्षक की उपस्थिति में किया जा सकता है।

3. प्रक्रिया विधि—इस विधि को क्रिया द्वारा सीखना (Learning by Doing) भी कहते हैं। शिक्षा में क्रिया को प्रधानता देने की शुरुआत शिक्षाशास्त्री क्रमेनियस ने की थी जिसे शिक्षाशास्त्री पेस्टालॉजी द्वारा बल दिया गया। यह विधि बच्चों के प्रशिक्षण में क्रियाशीलता के सिद्धान्त को स्वीकार करती है। फ्रोबेल द्वारा आविष्कारित शिक्षण विधि किण्डरगार्डन, खेल तथा प्रक्रिया द्वारा शिक्षा देने की विधि है।
इस विधि की विशेषताएँ निम्नप्रकार हैं—

  • यह विधि बालकेन्द्रित विधि होने के कारण बच्चों को प्रधानता देती है।
  • बच्चों में करके सीखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है।
  • इस विधि में वस्तुओं के संग्रह, पर्यटन, अवलोकन, परीक्षण के विषयों पर विशेष रूप से विचार किया जाता है।

4. अनुसंधान विधि—इस विधि को अन्वेषण विधि (Discovery Method) भी कहा जाता है, जिसका सूत्रपात प्रो० एच०ई० आर्मस्ट्रांग ने किया। इस विधि द्वारा बच्चों में खोज प्रवृत्ति का उदय करना है।
इस विधि के मुख्य गुण निम्न प्रकार हैं—

  • इस विधि में छात्रों के समक्ष समस्या प्रस्तुत कर प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता दी जाती है।
  • आवश्यकता पड़ने पर छात्र प्रश्न पूछते हैं, पुस्तकालय जाते हैं तथा डिजिटल रिसोर्सज का प्रयोग करते हैं।
  • छात्र स्वाध्यायी बन जाते हैं।
  • छात्रों में अनुशासन, आत्मसंयम तथा आत्मविश्वास जाग्रत होता है।
  • छात्रों को नियमित परिश्रम करने की आदत पड़ती है।
  • छात्रों द्वारा अर्जित ज्ञान स्थायी होता है।
  • सफलता-प्राप्ति पर छात्र अधिक उत्साही और प्रेरित होते हैं।

5. पर्यटन विधि—यह विधि छात्रों को प्रत्यक्ष ज्ञान देने के सिद्धान्त पर आधारित है। इस विधि में छात्रों को स्कूल की चारदीवारी से बाहर निकालकर स्वयं प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने का अवसर दिया जाता है।
इस विधि के कुछ गुण निम्न प्रकार हैं—

  • कक्षा तथा प्रयोगशाला में पढ़ी गई विज्ञान की बातों, तथ्यों ,वस्तुओं, सिद्धान्तों एवं नियमों का बाहरी जगत् में आकर स्पष्टीकरण देने का अवसर मिलता है।
  • इस विधि से विज्ञान शिक्षण सरल, बोधगम्य तथ आकर्षक बन जाता है।
  • छात्रों में निरीक्षण क्षमता का विकास होता है।
  • छात्र ज्ञान को क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित करना सीखते हैं।
  • यह विधि मनोरंजक होने के कारण बच्चे थकते नहीं हैं।

6. प्रयोगशाला विधि—प्रयोगशाला विधि (Lab Method) में छात्र स्वयं प्रयोगशाला में प्रयोग करता है, निरीक्षण करता है और परिणाम निकालता है। शिक्षक संसाधक के रूप में छात्रों का मार्गदर्शक करता है।
इस विधि के कुछ गुण निम्न प्रकार हैं—

  • इस विधि से छात्रों में निरीक्षण, परीक्षण, चिंतन, तर्क आदि कुशलताओं का विकास किया जाता है।
  • छात्रों की अधिकाधिक ज्ञानेन्द्रियों का प्रयोग इस विधि में होता है।
  • छात्रों को वैज्ञानिक विधियों में प्रशिक्षित किया जाता है।
  • छात्रों में वैज्ञानिक अभिवृद्धि का विकास इस विधि से होता है।

7. अवलोकन विधि—अवलोकन विधि (Observation Method) में छात्र स्वयं निरीक्षण कर वास्तविक ज्ञान प्राप्त करते हैं। इस विधि में निरीक्षण करने की प्रक्रिया को अधिक व्यवस्थित, सबल एवं प्रभावी बनाया जाता है।
इस विधि के प्रमुख गुण अधोलिखित हैं—

  • करके सीखने के सिद्धान्त पर आधारित होने से यह विधि रोचक है।
  • प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है।
  • छात्रों में अभिव्यक्ति प्रकट करने की अभिवृत्ति का विकास होता है।

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