नैतिक मूल्य और संस्कार हमारा जीवन संवारते हैं
नैतिक मूल्य और संस्कार के सम्बन्ध में विचार करने से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि समाज से क्या तात्पर्य है? उत्तर है-‘समान भावना के साथ अपने निर्दिष्ट लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ता व्यक्तियों का समूह ‘समाज’ कहलाता है।’ प्रत्येक समाज के कुछ निश्चित एवं सर्वव्यापी जीवन मूल्य होते हैं। सारे जीवन मूल्य न तो जन्मजात प्रकृति के होते हैं और न आदिकाल से चली आ रही पुरातन सर्वमान्य नियमावली ही। प्रारम्भ से ही घर-परिवार, आस-पड़ौस व पाठशालायें आदि सामाजिक संस्थाएँ मूल्यों के निर्माण में सहायता करती हैं। सामाजिक मूल्य समाज के किन्हीं विशिष्ट व्यक्तियों या पुरोधाओं द्वारा निर्धारित नियम हैं जिनके अनुपालन पर समाज का अस्तित्व निर्भर करता है। म़जबूत मूल्य हमेशा म़जबूत व्यक्ति एवं परिवार को जन्म देते आये हैं।
स्पष्टत: किसी समाज के श्रेष्ठ और आदर्श जीवन मूल्य ही उसकी सच्ची आन्तरिक शक्ति होते हैं। मूल्यों के क्रमागत ह्रास से व्यक्ति के आचरण, चरित्र तथा आत्मबल में गिरावट आती है जिसके परिणामस्वरूप समूचे समाज का पतन होता है। व्यक्तियों के खुद के निर्माण पर समग्र समाज का निर्माण निर्भर करता है। इसलिए समाज को स्वस्थ रखने के लिए व्यक्ति को चाहिए कि वह विज्ञान की खोज की तरह सर्वव्यापी जीवन मूल्यों को तलाश कर अपने भीतर प्रतिष्ठित करे। श्रेष्ठ मूल्यों के निर्वाह से ही उत्कृष्ट जीवन का निर्माण होता है।
भाग्यवादी कहते हैं कि मनुष्य को भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। भाग्यवादी कर्म के सिद्धान्त पर इतना विश्वास नहीं रखते कि जितना भाग्य पर। वे मानते हैं कि जो कुछ हमें मिलना है, वह हमें हर हाल में प्राप्त होगा। कर्म का सिद्धान्त मानने वाले कर्मवादी कुछ करके दिखाने में यकीन रखते हैं। कर्मयोगी अपना भविष्य खुद लिखते हैं। भाग्यवाद से कर्मवाद का सिद्धान्त अच्छा है। कर्म का सिद्धान्त मानता है कि मनुष्य को जीवन मूल्यों का कठोरता से अनुपालन करना चाहिए। इससे सत्यनिष्ठा, सुरक्षा की भावना व आत्मविश्वास पैदा होते हैं और व्यक्ति आत्म सम्मान से परिपूरित हो जाता है। इसके विपरित मूल्यों के साथ समझौता करने से व्यक्ति अपनी नजर में खुद ही गिर जाता है। अपमानजनक लम्बा जीवन जीने से बेहतर है कि हम आत्म सम्मान भरा छोटा ही जीवन जी लें।
इस सम्बन्ध में अमेरिका के विख्यात एवं लोकप्रिय राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन के जीवन का एक वृतान्त बहुत प्ररेक है। लिंकन एक सफल वकील थे। उनके पास एक मुकदमा आया जो कानूनी रूप से काफी मजबूत था लेकिन नैतिक मूल्यों की दृष्टि से बहुत कमजोर। मुकदमे में वाद-प्रतिवाद के दौरान झूठे तथ्यों का सहारा लेना वकील की भूमिका में अब्राहिम लिंकन की मजबूरी थी। केस लड़ने का फैसला लेते समय लिंकन ने सोचा कि बहसे के दौरान मैं अपनी अन्तर्रात्मा के समक्ष झूठा बन जाऊँगा। ऐसे में मैं खुद के साथ नहीं जी पाऊँगा। इस भावना के साथ लिंकन ने केस नहीं लिया और उसे लड़ने से इंकार कर दिया।
सम्मानित जीवन जीने का एक ऐसा ही अन्य उदाहरण कुशल एवं कार्यनिपुण एकाउन्टेण्ट का है जिसके पास ऐसे काम का प्रस्ताव आया जिसमें उसे बड़ी रकम मिल सकती थी। काम गैर-कानूनी तो नहीं था किन्तु बेईमानी से भरी भ्रष्ट एवं अनैतिक प्रकृति वाला था। निश्चय ही, उस काम को करने वाला व्यक्ति कानूनी रूप पूरी तरह से सुरक्षित अवश्य था लेकिन इसमें सन्देह नहीं कि उस काम को करके उसके जीवन के नैतिक मूल्य धराशायी हो जाते। इस उलझन में आखिर एकाउन्टेण्ट ने प्रस्ताव की स्वीकृति से पहले अपनी माँ के सामने समस्या रखी। थोड़ा सोचकर माँ ने कहा कि बेटे, मैं हर सुबह तुझे गहरी नींद से जगाने आती हूँ। मैं नहीं चाहती कि मैं तुझे जगाने जाऊँ और तू मुझे पहले से ही जगा हुआ मिले, जो मैंने कहा है उस पर विचार करना। अंतिम फैसला तुम्हारे हाथ में है। यह कहते हुए माँ कमरे से बाहर निकल गयी। युवक को उत्तर मिल गया था। इन दोनों दृष्टान्तों से शिक्षा मिलती है कि हर व्यक्ति को नैतिक मूल्यों से युक्त सम्मानित जीवन जीना चाहिए। हमेशा उचित व सही काम करें जो नैतिकता की परिधि में आता हो। भले ही, हमें कोई देख नहीं भी रहा हो पर हमें अपनी नैतिकता का स्तर सदैव ऊँचा रखना चाहिए।
हर आदमी के जीवन में संस्कारों का बड़ा महत्त्व है। व्यक्ति जो कर्म करता है, उस कर्म का प्रतिकर्म ‘संस्कार’ कहलाता है। पवित्र और भले कर्म करने से अच्छे संस्कार और अपवित्र बुरे कर्मों से बुरे संस्कार जन्म लेते हैं। संस्कारो के दो रूप हैं- पूर्व जन्म के संस्कार और अर्जित संस्कार। अर्जित संस्कारों की पृष्ठभूमि में हमारे परिजन तथा बुजुर्ग लोगों का मार्गदर्शन काम करता है। अच्छे संस्कार सच्चाई के मार्ग पर आगे बढ़ने में हमें मदद देते हैं। पवित्र संस्कारों से हमारे मन को सही या गलत का निर्णय लेने में आसानी हो जाती है।
नैतिक संस्कार हमारे धार्मिक जीवन की आधारशिला हैं। धर्म के पथ पर चलने के लिए मानवीय गुणों का समावेश अपरिहार्य है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, सन्तोष, प्रेम, करूणा, दया तथा सेवा भावना आदि नैतिक गुणों के पालन बिना धर्म-कर्म पाखण्ड के अलावा और कुछ नहीं है। धर्म प्राणिमात्र की सेवा सिखाता है और सभी प्राणियों की सेवा का कार्य हम मनुष्यों का परमधर्म है।
संस्कारविहीन जीवन पशुतुल्य है। अच्छे संस्कारों से युक्त व्यक्ति सुसंगति हेतु अभिप्रेरित होता है और कुसंगति से बचता है। उत्तम जीवन मूल्यों को ग्रहण करने वाला सुसंस्कारित व्यक्ति कल्याणकारी दिशा में अग्रसर होता है। मानव जीवन के चरमलक्ष्य की ओर उन्मुख होकर वह आत्मसाधना के बल पर आत्मोन्नति तथा आत्मविश्वास की प्राप्ति करता है। निष्कर्षत: नैतिक मूल्यों से युक्त प्रत्येक संस्कारित व्यक्ति का जीवन पथ प्रशस्त और कल्याणकारी होता है।