Chess यानी शतरंज का खेल; इसे खेलने के लिए दिमाग का कितना इस्तेमाल करना पड़ता है, ये हम सब अच्छी तरह जानते हैं। कितने लोग गैरी कास्पारोव के बारे में भी जानते हैं? रूस में जन्मे गैरी कास्पारोव को विश्व में शतरंज के खेल के महानतम खिलाड़ियों में गिना जाता है। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि शंतरज के खेल की जितनी समझ अपने समय में कास्पारोव को थी उतनी दुनिया के किसी दूसरे व्यक्ति को नहीं थी। लेकिन 1997 में कुछ ऐसा हुआ जिसकी कास्पारोव कभी कल्पना भी नहीं कर सकते थे। एक मनुष्य नहीं बल्कि एक मशीन ने उन्हें उसी खेल में हरा दिया जिसमें वो विश्व चैम्पियन थे। यह मशीन थी एक सुपर कम्प्यूटर ‘डीप ब्ल्यू’ (Deep Blue), जिसे आई०बी०एम० ने विकसित किया था। डीप ब्ल्यू थी तो एक मशीन, लेकिन खेल के दौरान वह अपनी चालों को कुछ इस तरह से चल रही थी कि कास्पारोव को ये लगने लगा कि उनका सामना एक मशीन से नहीं बल्कि एक ऐसे मनुष्य से है जो शतरंज के खेल को उनसे कहीं बेहतर तरीके से खेल सकता है।
चीन, जापान तथा कोरिया जैसे देशों में लोकप्रिय बोर्ड गेम ‘गो’ (Go) के नियम तो काफी सरल होते हैं, लेकिन चाल चलने के लिए असंख्य संभावनाएँ होती हैं। Chess की तरह आप इस खेल में चाल चलने की सभी संभावनाओं की पूर्व गणना नहीं कर सकते। खेल का उद्देश्य होता है बोर्ड के ज़्यादा से ज़्यादा भाग पर अपना अधिकार करना। इसे खेलने के लिए कौशल और रणनीति तो चाहिए ही, किन्तु उससे भी अधिक सहज बोध (Intuition),रचनात्मकता (Creativity) और अनुभव की आवश्यकता है, यानी ऐसा कुछ जिसकी अपेक्षा एक मानव मस्तिष्क से ही की जा सकती है किसी मशीन से नहीं। गूगल (Google) ने इस खेल को खेलने में सक्षम एक कम्प्यूटर प्रोग्राम ‘एल्फा गो’ (AlphaGo) विकसित किया। वर्ष 2016 में इसका सामना बोर्ड गेम Go के चैम्पियन साउथ कोरिया के खिलाड़ी ली सिडोल (Lee Sedol) से कराया गया। नतीजा वही निकला, जैसा 1998 में गैरी कास्पारोव के साथ हुआ था–ली सिडोल हार गये। मानव मस्तिष्क एक बार फिर एक मशीनी मस्तिष्क से पराजित हो गया।
क्या इन दोनों घटनाओं से हम ये मान लें कि एक मशीन में मनुष्य की तुलना में बेहतर समझ विकसित की जा सकती है? क्या मशीन अनुभवों से सीखकर नयी परिस्थितियों में निर्णय ले सकती है? या क्या वह मानव मस्तिष्क से अधिक बुद्धिमान हो चुकी है? वर्तमान समय में इतना कुछ हो गया हो, यह तो संभव नहीं लगता, लेकिन ये जरूर कहा जा सकता है कि ऐसा कुछ होने की शुरुआत शायद हो गयी है।
Intelligence (बुद्धिमत्ता) क्या है? अगर मानव मस्तिष्क की बात करें तो इसे कुछ इस तरह से समझ सकते हैं–मनुष्य जिस प्रकार जन्म से ही विभिन्न वस्तुओं और आस-पास हो रही घटनाओं को समझने का प्रयास करता है, तार्किक ढंग से सोचता है, प्रश्न करता है, कल्पना करता है, अनुभवों से लगातार सीखता है, समस्याओं को सुलझाता है, अनजान परिस्थितियों में निर्णय लेता है–कुल मिलाकर इन सभी विशेषताओं का होना बुद्धिमत्ता है। सम्पूर्ण विश्व में केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसका मस्तिष्क एक साथ इतनी सारी विशेषताओं को लिए हुए है। इसे हम Natural Intelligence (प्राकृतिक अथवा स्वाभाविक बुद्धिमत्ता) भी कह सकते हैं।
अब मान लीजिए, एक मशीन अथवा कम्प्यूटर में कुछ इसी तरह की विशेषताएँ हों–मनुष्य की भाषा को समझ पाना और उसी में प्रतिक्रिया देना, वस्तुओं और चित्रों को पहचान सकना, दिए गए Data से सीखना और समस्याएँ सुलझा लेना, अपरिचित स्थितियों में स्वयं निर्णय ले सकना–तो इसको हम कहेंगे Artificial Intelligence (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) अथवा Machine Intelligence, दूसरे शब्दों में, कृत्रिम रूप से विकसित एक ऐसा System जिसकी क्षमताएँ मानव मस्तिष्क जैसी हैं या जो मानव बुद्धिमत्ता के करीब है।
क्या Artificial Intelligence को हम किसी हद तक हासिल कर पाये हैं? Google से कोई जानकारी लेने के लिए जब हम उसके Search Bar पर type करते हैं तो वह कई प्रकार के सुझाव देकर अपेक्षित परिणाम तक पहुँचने में हमारी सहायता करता है। ये सुझाव हमारे द्वारा पहले कभी search की गयी जानकारियों के आधार पर भी होते हैं। हम कह सकते हैं कि यह Artificial Intelligence का ही एक सरल सा उदाहरण है।
केवल गणनाएँ कर सकना बुद्धिमत्ता को नहीं दर्शाता। एक कैलकुलेटर या साधारण कम्प्यूटर तथा एक AI सिस्टम में फर्क समझना जरूरी है। कम्प्यूटर केवल वही कार्य कर पाता है जिसके लिए उसे प्रोग्राम किया गया है। अपने इस प्रोग्राम के दायरे से बाहर कुछ कर पाना उसके लिए संभव नहीं है। जबकि एक AI सिस्टम इस दायरे को लांघ जाता है। वह दिए गए उदाहरणों व जानकारियों से निरन्तर सीखता है, निर्णय लेता है–ठीक एक मनुष्य की तरह।
Google Assistant एक ऐसा System है जिसमें Artificial Intelligence की झलक मिलती है। यह हमारे लिए एक Virtual Assistant या सहायक के तौर पर कार्य करता है और इसका इस्तेमाल हम अपने Android Mobile Phone पर भी कर सकते हैं। हम जिस भाषा में बात करते हैं (हिन्दी अथवा अंग्रेजी), यह उस भाषा को सुनकर समझ सकता है। हमारे द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर या दिए गए निर्देशों पर अपनी प्रतिक्रिया यह उसी भाषा में बोलकर देता है। यह कई तरह के कार्य कर सकता है–इंटरनेट पर विभिन्न जानकारियाँ खोजना, मौसम की जानकारी देना, अलार्म सेट करना, फोन नं० मिलाना, मैसेज भेजना, डिवाइस की सैटिंग में बदलाव करना इत्यादि। गूगल के अनुसार यह आने वाले समय में डिवाइस के कैमरे की सहायता से विभिन्न वस्तुओं और दृश्यों की पहचान कर पायेगा, हमारे रो़जाना के कार्यों की व्यवस्थित सूची तैयार करेगा, यहाँ तक कि पैसों का लेन-देन कर सकेगा और कई उत्पादों को खरीदने में हमारी मदद भी करेगा।
Amazon द्वारा विकसित Alexa भी कुछ इसी प्रकार का System है।
भविष्य के AI System की तुलना में मानव मस्तिष्क की क्षमता काफी सीमित होगी। ये System एक विश्वव्यापी नेटवर्क यानी Internet से जुड़े रहकर लगातार, बिना थके, Data की एक बहुत बड़ी मात्रा को तीव्र गति से बेहद कम समय में process कर रहे होंगे।
लेकिन इन सबके बावजूद कुछ विशेषताएँ ऐसी हैं, जो केवल मनुष्य में हैं और किसी मशीन में इनके होने की संभावना अभी दूर-दूर तक नहीं दिखती। मनुष्य में मन है और वह अपने अस्तित्व का अनुभव कर सकता है। वह भावनाओं से भरा है। मनुष्य सोचता है, सपने देखता है, कविताएँ और कहानियाँ लिखता है। सुदूर भविष्य में यदि किसी मशीनी सिस्टम में मन विकसित कर दिया जाये तो वह Artificial Intelligence के विज्ञान की चरम सीमा होगी। इस प्रकार के ‘Self Aware System’ को अपने अस्तित्व का बोध होगा, वह मनुष्य की तरह सोचेगा और हो सकता है उसमें भावनाएँ भी जन्म लें।
हॉलीवुड की कुछ फिल्मों में Artificial Intelligence के काल्पनिक उदाहरण देखने को मिलते हैं। लेकिन ये System बुद्धिमत्ता में, कार्य क्षमता में इतने अधिक उन्नत हैं कि इस स्तर के AI System विकसित कर पाना आज के मनुष्य की सीमाओं से परे की बात है।
‘Terminator’ Series की फिल्मों में Skynet System, जो Self Aware होकर मानव जाति के लिए ही खतरा बन जाता है।
क्या कोई मशीन किसी मनुष्य की तरह सीख सकती है? यह अपने आप में काफी जटिल प्रक्रिया है। एक मानव शिशु में सीखने की क्षमता एक मशीन की अपेक्षा काफी अधिक होती है। उदाहरण के लिए, मानव शिशु सेब के चित्र को किसी पुस्तक में देखकर वास्तविक सेब को पहचान सकता है। लेकिन एक मशीन के लिए ऐसा कर पाना फिलहाल संभव नहीं है। इसी तरह कुत्ते और बिल्ली में फर्क कर पाना एक मानव शिशु के लिए तो आसान हो सकता है लेकिन एक मशीन के लिए नहीं।
फिल्म ‘I, Robot’ में रोबोट Sonny, जिसमें मनुष्य जैसा मन और भावनाएँ विकसित हो जाती हैं और वह सपने भी देखता है।
या फिर ‘Iron Man’ में AI System- JARVIS, जिसे फिल्म के नायक Tony Stark ने अपने Assistant के रूप में विकसित किया है। जो एक मनुष्य की तरह बात करता है, सुझाव देता है, कई तरह के कार्य करता है और आने वाले खतरों से सतर्क भी करता है।
यूँ तो ये फिल्मी कल्पनाएँ असंभव सी लगती हैं, पर इन्हीं सब से कहीं न कहीं भविष्य का रास्ता तैयार होता है।
Artificial Intelligence के विज्ञान को जानने समझने के लिए कम्प्यूटर साइंस की डिग्री होना या कम्प्यूटर प्रोग्रामर होना जरूरी नहीं है। कम्प्यूटर और इससे जुड़ी तकनीकों की थोड़ी बहुत जानकारी आज सभी के पास है। जिस किसी क्षेत्र में आपकी रूचि है या जिस क्षेत्र में आप अपना भविष्य देखते हैं–इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञान, बैंकिंग, फाइनेन्स, सेल्स और मार्केटिंग, साइबर सुरक्षा, मनोरंजन, पत्रकारिता, सशस्त्र सेनाएँ, अध्यापन या कुछ और–पता लगाएँ कि AI टेक्नॉलॉजी उस क्षेत्र में कैसे इस्तेमाल की जा रही है या AI के लिए वहाँ क्या सम्भावनाएँ हो सकती हैं? इस बारे में पढ़ें और अपने मित्रों से चर्चा करें। हम में से हर एक के लिए Artificial Intelligence को जानना आवश्यक है, क्योंकि निकट भविष्य में मानव जीवन की कोई ऐसी गतिविधि नहीं होगी या कोई ऐसा क्षेत्र नहीं होगा जहाँ AI टेक्नॉलॉजी या AI System का प्रयोग न हो रहा हो।