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हर चुनौती बन जाती है हमारा प्रेरणा-दीप

वस्तुत: ऊर्जा का स्रोत हमारी मौलिक सोच तथा भावनाओं में निहित है। सफलता में हमारी सकारात्मक सोच का बड़ा योगदान रहता है। नकारात्मक सोच हमें पथ— विचलित कर देती है और हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं।

मनुष्य का जीवन नित्य परिवर्तनशील, गत्यात्मक और चुनौतियों से भरा है। हम चुनौतियों को आमतौर पर बुलाते नहीं हैं, न अनावश्यक रूप से उनकी माँग ही करते हैं, फिर भी वे किसी-न-किसी शक्ल में सामने आकर खड़ी हो जाती हैं। हर किसी को सम्मुख खड़ी चुनौती का सामना करना होता है चाहे वह छोटी हो अथवा बड़ी।
चुनौतियाँ परिस्थितिजन्य होती हैं। प्रतिकूल दशा में ये लघु पाषाणखण्ड भी हो सकती हैं और पर्वताकार भी, किन्तु हर दशा में उनसे जूझना ही होता है। चुनौती दूर होने तक जीवन में ठहराव पसर सकता है और उत्तर की प्रतीक्षा में एक प्रश्न-चिह्न खड़ा रह सकता है। इसलिए भयभीत होने से अच्छा है कि हम जीवन-मार्ग में सम्मुख खड़ी चुनौती का निर्भीकता से साहसपूर्वक सामना करें और उस पर विजय प्राप्त करें। जीवन पथ पर बढ़ते हुए नई चुनौतियाँ अवश्यम्भावी हैं। इन्हें जीतने के लिए अधोलिखित सूत्र आपके बहुत काम आयेंगे—
(i) सकारात्मक सोच ऊर्जा देगी— जीवन में सफलता पाने तथा उस सफलता को स्थायी बनाने के लिए निरन्तर प्रयास, कार्यानुभव और आत्मविश्वास की जरूरत होती है। इन्हीं से हमें सतत ऊर्जा मिलेगी जो कठिनाइयों से जूझने व संघर्ष करने में प्रयुक्त होगी। वस्तुत: ऊर्जा का स्रोत हमारी मौलिक सोच तथा भावनाओं में निहित है। सफलता में हमारी सकारात्मक सोच का बड़ा योगदान रहता है। नकारात्मक सोच हमें पथ-विचलित कर देती है और हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। लक्ष्य की सुनिश्चित उपलब्धि के लिए अपनी सोच को सन्तुलित रखने और अपनी भावनाओं को नियन्त्रित रखने की आवश्यकता है। उचित है कि हम जीवन के छोटे-बड़े प्रत्येक काम को चुनौती के रूप में स्वीकार करें और उसका सामना करने के लिए सकारात्मक सोच से नित नई ऊर्जा प्राप्त करें।
(ii) उपेक्षित नहीं है कोई भी कार्य— लक्ष्य की ओर उन्मुख हमारा हर एक कदम महत्त्वपूर्ण होता है। हमारे प्रत्येक प्रयत्न अथवा कर्म का अपना अर्थ, कारण व परिणाम होता है। छोटे-से-छोटे प्रयास का भी अपना औचित्य है। यदि युद्धभूमि में तलवार का अपना महत्त्व है तो कपड़े की सिलाई में सुईं की अपनी अनोखी खासियत है। युद्ध में सुईं काम नहीं आ सकती तो कपड़ा सिलने में तलवार का क्या काम है? स्पष्टत: लक्ष्य-प्राप्ति का साधन बनने में छोटी से छोटी वस्तु का भी बहुत बड़ा महत्त्व है। सीढ़ी के छोटे-छोटे सोपान हमें ऊँची मंजिल तक पहुँचाते हैं। इसी प्रकार चुनौती का सामना करने में प्रत्येक कदम व प्रयास का अपना महत्त्व होता है जिसकी अवहेलना नहीं की जा सकती। यह अकाट्य तथ्य है कि कोई भी कार्य उपेक्षित नहीं कहा जा सकता। इसलिए किसी भी काम को छोटा समझकर उसकी उपेक्षा न करें। छोटे-छोटे कार्यों को रुचि के साथ निष्ठापूर्वक करने वाले लोग ही बड़े काम कर सकते हैं।
(iii) हीनमन्यता का शक्ति रूपान्तरण— यह सर्वविदित है कि सबल के सम्मुख बलहीन नहीं टिकता और शक्तिशाली प्राणी निर्बल प्राणियों को अपना शिकार बना लेते हैं। छोटी-छोटी मछलियाँ बड़ी मछलियों का ग्रास बन ही जाती हैं। यह एक नैसर्गिक प्रघटना है कि विशाल शक्ति के सामने निरीह सत्ता को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ता है। निरीहता शनै:-शनै: हीनता की भावना को जन्म देती है। हीनता की भावना से आत्मविश्वास में कमी आती है जिससे व्यक्ति की कार्यक्षमता कम हो जाती है। इस भाँति, हीनता का भाव रखने या मन की हीनमन्यता से शक्तिहीनता उत्पन्न होती है। यह भी सत्य है कि शक्तिहीनता के कारण जीवन संघर्ष कमजोर पड़ जाता है। कुल मिलाकर हीनमन्यता की भावना का प्रादुर्भाव एवं विकास एक भयावह बीमारी है जो चुनौतियों से लड़ने में बहुत बड़ी बाधा बनती है।
ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को विवेक से काम लेना चाहिए और अपनी निर्बलताओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उन पर जीत हासिल करनी चाहिए। सभी जानते हैं कि दुनिया में हर समय-हर जगह और हमेशा शक्तिशाली ताकतों के साथ कमजोर सत्ताओं का पर्याप्त अस्तित्व रहता है। अतएव हीन मानकर दु:खी, निराश व हताश होने की जगह, आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी निर्बलताओं को सबल आत्मशक्ति में रूपान्तरित कर दें। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इसके लिए ‘आत्मिक सुझाव’ लेना अपरिहार्य एवं उपयोगी प्रविधि है। यह सोचना निरर्थक है कि गिलास कितना खाली है, यह सोचना सार्थक है कि गिलास कितना भरा हुआ है। अपने भीतर मौजूद शक्तियों व क्षमताओं को पहचानना श्रेयकारी है। अवश्य ही, सकारात्मक आत्म सुझाव लेने की पुनरावृत्ति एक दिन आपकी हीनमन्यता को महामन्यता की अपार शक्ति में बदल देगी। अत: सकारात्मक आत्म-सुझाव लेने को अपनी पक्की आदत बना लें।
(iv) स्वतन्त्र आत्मनिर्णय ही सर्वोत्तम— प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिए स्वतन्त्र आत्मनिर्णय लेना एक सर्वोत्तम प्रवृत्ति है। चुनौती कुछ भी हो और कैसी भी हो, उससे रूबरू होने के समय हमें सबसे पहले वस्तुनिष्ठ आत्म-मूल्यांकन करना चाहिए। इस सन्दर्भ में हमें प्रयोगात्मक तथा व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। सम्मुख आयी चुनौती पर विजय पाने के लिए नीति एवं आव्यूह तैयार करते समय आत्मनिर्णय श्रेष्ठ रहता है। निर्णय लेते समय किसी प्रकार की भावुकता का शिकार नहीं होना चाहिए और न ही लकीर का फकीर होकर कोई अड़ियल रवैया ही अपनाना चाहिए। हाँ, आत्मनिर्णय सम्बन्धी सन्देह अथवा भ्रान्ति की स्थिति में विशेषज्ञों से परामर्श और मार्गदर्शन प्राप्त करना बेहतर है। निष्कर्ष यह है कि हमारा अपना निर्णय आत्मप्रेरित व आत्मनिश्चित प्रकृति का हो और हमें उस पर कठोरता से कायम रहना चाहिए।
(v) चिन्तन से करें आत्म-मूल्यांकन— अपना मूल्यांकन करके यथार्थ तक पहुंचने के लिए आत्म-चिन्तन आवश्यक है। आत्म-मूल्यांकन से अन्तर्निहित शक्तियों और क्षमताओं का पता चलता है। अपने विषय में सम्यक् ज्ञान होने से व्यक्ति गलतफहमी का शिकार नहीं होता तथा अपनी ताकत पहचानकर निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ता है। इसलिए लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करते हुए पूरी शक्ति से जीवन पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। सफलता न मिलने की स्थिति में अगले प्रयास में अपनी क्षमता में वृद्धि करने का संकल्प लेना चाहिए। परिस्थिति को पहचानकर अपने भीतर नयी कला व कौशल का विकास करना चाहिए। विकास की दिशा में उन्मुख होने के लिए कुछ नया सीखने की आदत रहनी चाहिए। बेहतर कार्यप्रदर्शन की दृष्टि से समय प्रबन्धन को ठीक कर लेना बहुत आवश्यक है। संक्षेप में, आत्म-चिन्तन से आत्म-मूल्यांकन करें और अपनी पूरी सामथ्र्य से लक्ष्य की ओर बढ़ें। सफलता का यही मूल्यवान सूत्र है।
(vi) हर कार्य एक चुनौती है— ऐसा नहीं है कि किसी कष्टसाध्य अथवा दुष्कर कार्य को ही हम चुनौती के रूप में स्वीकार कर उसका सामना करें। जीवन में सफलता प्राप्त करने और उसे सुफल बनाने के लिए बेहतर है कि हम हर एक कार्य को चुनौती के रूप में अंगीकार करें। प्रत्येक कार्य को चुनौती बनाने से लक्ष्य का निर्धारण तो स्वयं ही हो जायेगा और उसकी प्राप्ति हेतु व्यूह-नीति बनाने में सरलता रहेगी। व्यूह-नीति के लिए वांछित कला-कौशल और कार्य पद्धति का चुनाव भी सहज होगा। प्रभावशाली कार्यप्रदर्शन के लिए व्यवस्थित प्रबन्ध करना होता है, कमी रहने पर उचित शोधन व सुधार लाने होते हैं और लक्ष्य-प्राप्ति तक अपने प्रयासों को नये-नये स्वरूपों में ढालना पड़ता है।
हर कोई अपने जीवन में सफलता चाहता है और वह भी उच्चकोटि की सफलता। मानव प्रवृत्ति तो सफलता की ऊँचाइयों में आकाश छूने की है, किन्तु यह स्वप्न जितना मोहक व रोचक है उसे साकार करना उतना आसान नहीं है। इसके लिए हर किसी को एक मूल्य चुकाना होता है। प्रेरणा, प्रयास और अथक् श्रम की आवश्यकता होती है। सफलता के एवरेस्ट पर कदम रखने के लिए उद्यम से भरा सतत प्रयास चाहिए। उच्चकोटि की सफलता के लिए अपने मन को दृढ़ करना होगा। करणीय हर कार्य को चुनौती के रूप में स्वीकार कर लक्ष्य-निर्धारण करना होगा। लक्ष्य के लिए उन्मुख अथक परिश्रम से शानदार उपलब्धि हासिल होगी और इस तरह से हर चुनौती हमारे लिए एक प्रेरणा-दीप बन जायेगी जिससे कर्मयोग अगणित दीप प्रज्वलित हो जायेंगे।

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