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सूचना प्रौद्योगिकी के केन्द्र में है भौतिक विज्ञान

सूचना प्रौद्योगिकी आँकड़ों की प्राप्ति, सूचना संग्रह, सुरक्षा, परिवर्तन, आदान-प्रदान, अध्ययन, डिजाइन आदि कार्यों तथा इन कार्यों के निष्पादन के लिए आवश्यक कम्प्यूटर हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर अनुप्रयोगों से सम्बन्धित है। सूचना प्रौद्योगिकी कम्प्यूटर पर आधारित सूचना प्रणाली का आधार है। संचार क्रान्ति के फलस्वरूप अब इलेक्ट्रॉनिक संचार को भी सूचना प्रौद्योगिकी का एक प्रमुख घटक माना जाने लगा है।

सूचना प्रौद्योगिकी के प्रमुख घटक—

सूचना प्रौद्योगिकी के प्रमुख घटकों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:—

1. मानव संसाधन

मशीनें मनुष्य के बिना अनुपयोगी होती हैं, इसीकारण मानव सम्पदा इस प्रौद्योगिकी में तंत्र-प्रशासक एवं नेटवर्क-प्रशासक के रुप में महत्वपूर्ण अंग है। वहीं विभिन्न प्रकार के डाटा, सूचनायें, चित्र, ऑडियोवीडियो रिकार्डिंग जैसे नॉन डिजिटल डाटा को एकत्र करता है तथा उसे की-बोर्ड, स्कैनर आदि के द्वारा अपलोड करने का काम करता है।

2. कम्प्यूटर हार्डवेयर प्रौद्योगिकी

इसके अन्तर्गत माइक्रोकप्यूटर, सर्वर, बड़े मेनफ्रेम कम्प्यूटर के साथसाथ इनपुट, आउटपुट एवं संग्रह करने वाली युक्तियाँ: जैसे-की-बोर्ड, माउस, स्कैनर, बारकोड रीडर, लाइटपेन, जॉयस्टिक, माइक्रोफोन, वेबकेम, पेनड्राइव आदि युक्तियाँ आती हैं।

3. कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी

सूचना प्रौद्योगिकी का हाईवेयर यदि शरीर है तो सॉफ्टवेयर इसकी आत्मा है। इसके बिना इसका कोई अस्तित्व नहीं है। इसके अन्तर्गत ऑपरेटिंग सिस्टम, वेब ब्राउजर, डेटाबेस प्रबन्धन प्रणाली, सर्वर तथा व्यापारिक/वाणिज्यिक सॉफ्टवेयर आते हैं।

4. दूरसंचार व नेटवर्क प्रौद्योगिकी

इसके अन्तर्गत दूरसंचार के माध्यम, प्रक्रमक (प्रोसेसर) तथा इंटरनेट से जुड़ने के लिए तार या बेतार पर आधारित सॉफ्टवेयर, नेटवर्क सुरक्षा, सूचना की कोडिंग आदि हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी में भौतिक विज्ञान—

सूचना प्रौद्योगिकी ने हमारे दैनिक जीवन में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन किया है। ट्रांजिस्टर, कम्प्यूटर और इंटरनेट बीसवीं शताब्दी की महत्त्वपूर्ण खोजें हैं जो आधुनिक तकनीक का आधार हैं। आज इस प्रौद्योगिकी ने हमारी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं व्यापारिक जीवन शैली पर अपना प्रभुत्व बना रखा है। लेकिन इसके केन्द्र में भौतिक विज्ञान है जिससे इसकी विभिन्न प्रक्रियाओं को समझा व जाना जा सकता है। भौतिकी के विभिन्न क्षेत्रों में की गयी खोजों आधुनिक तकनीक के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण घटक साबित हुई है। भौतिकी के विभिन्न क्षेत्रों का इस प्रौद्योगिकी में महत्त्व इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है—

1. सेमीकण्डक्टर (Semi-Conductor) की भूमिका—

सेमीकण्डक्टर (अद्र्धचालक) वे पदार्थ हैं जो चालक और कुचालकों के बीच आते हैं। इनका उपयोग हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर उपकरणों की चिप/ माइक्रोचिप बनाने में किया जाता है। प्रौद्योगिकी के उच्च मापदंडों (High Efficiency and Less Size) को प्राप्त करने के लिए इन पदार्थों को चरणबद्ध तरीके से परिवर्तित किया गया। विभिन्न सोपानों के अन्तर्गत इन्हें निम्नवत् वर्णित कर आसानी से समझा जा सकता है:-

(i) निर्वात नलिका (Vacuum Tubes) —प्रथम चरण (1945-1955) के कम्प्यूटर Vacuum Tubes के द्वारा बनाये गये थे जिनमें डायोड, ट्रायोड आदि वाल्वों का प्रयोग किया जाता था। ये वाल्व काँच के बने होते थे। 1946 में बनाये गये पहले क्म्प्यूटर में 1800 वाल्व प्रयोग किये गये थे जिससे ये काफी बड़े एवं भारी थे तथा 160 किलोवाट बिजली खपत करते थे। बड़े आकार, उच्च वोल्टेज खपत, कम कार्यक्षमता के कारण ये लम्बे समय तक उपयोगी नहीं रहे।

(ii) ट्रांजिस्टर्स (Transistors)— एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो अद्र्धचालकों से बनायी जाती है। ये आकार में छोटे तथा कम वोल्टेज में प्रयोग किये जा सकते हैं। इनकी कार्यकुशलता भी अधिक होती है। इन्हीं गुणों के कारण द्वितीय चरण के कम्प्यूटर (1956-1963) के लिए वाल्व के स्थान पर इनका प्रयोग किया गया। इससे कम्प्यूटर का आकार भी छोटा हो गया तथा कम ऊर्जा खपत के साथ-साथ वे अधिक कार्यकुशल हो गये।

(iii) इण्ट्रिग्रेटिड चिप्स (Integrated Chips)— यह तो सही है कि ट्रांजिस्टर्स से उपकरणों का आकार छोटा हो गया लेकिन इनके कुछ दोषों के कारण (जैसे अधिक ऊष्मा उत्पन्न करने से अन्य आन्तरिक अंगों को खराब करना) तीसरे चरण के कम्प्यूटर (1964-1971) में इन ट्रांजिस्टर्स को IC द्वारा परिवर्तित कर दिया गया। IC एक अद्र्धचालकीय चिप/माइक्रोचिप होती है जिसमें कई छोटे-छोटे रजिस्टैन्सेस, वैâपेसिटर्स और ट्रांजिस्टर्स एक साथ संगठित होते हैं। IC एक साथ कई प्रक्रियाओं (ऐम्पलिफायर, आस्किलेटर, टाइमर, काउन्टर तथा कम्प्यूटर मेमोरी) को सम्पादित कर सकते हैं। इनकी सबसे बड़ी विशेषता इनकी कम कीमत व उच्च गुणवत्ता है। वर्तमान में सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में इनका प्रयोग किया जाता है।
आज चौथे चरण के कम्प्यूटर (1972 के बाद से) इन IC को VLSI (Very Large Scale Integration) तकनीक के माध्यम से और अधिक उच्च गुणवत्ता की घ्ण् में परिवर्तित करके इनके आकार को छोटा किया गया तथा इनकी कार्यकुशलता को बढ़ा दिया गया। इसी के चलते वर्तमान समय की माँग को देखते हुए टेबलेट, लैपटॉप पामटॉप आदि का निर्माण किया जा सका है।

2. विद्युत चुम्बकीय तरंगों की भूमिका—

संचार माध्यम के लिए यह आवश्यक है कि सूचना का एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषण किया जा सके। इसके लिए विभिन्न विद्युत चुम्बकीय तरंगों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इनका प्रयोग सूचना को प्रेषित करने के लिए कैरियर तरंगों के रूप में किया जाता है। रेडियो तरंगें, माइक्रोवेब्स, इंफ्रारेड तरंगे तथा प्रकाश तरंगें इसमें महत्त्वपूर्ण हैं।

3. लेसर की भूमिका—

LASER (Light Amplification by Stimulated Emission of Radiation) की खोज 1960 में हुई थी। लेसर किरणें उच्च आवृत्ति की बद्ध तरंगे होने के कारण किसी सूचना को अधिक दूरी तक प्रसारित कर सकती हैं। इसलिए इनका उपयोग एयरपोर्ट पर सूचनाओं के प्रसारण के लिए किया जाता है।

4. ऑप्टिकल फाइबर की भूमिका—

लेसर तकनीक को आगे पुन: ऑप्टिकल फायबर तकनीक से परिवर्तित किया गया। ऑप्टिकल फायबर एक पतले काँच या प्लास्टिक की पतली नलिकायुक्त गाइड है जिसमें पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धान्त से किसी भी सूचना या डाटा को उसके एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचाया जा सकता है। इसका उपयोग टेलीफोन सिग्नल, इण्टरनेट तथा टीवी सिग्नल को प्रासरित करने में किया जाता है।

5. पराश्रव्य तरंगों की भूमिका—

ये अधिक ऊर्जायुक्त ध्वनि तरंगें होती हैं जिनकी आवृत्ति २० किलोहर्ट्ज से अधिक होती है। ये तरंगे धातुओं को पार कर सकती हैं। जिस वातावरण में रेडियो तरंगें नहीं जा सकती, वहाँ इन तरंगों का प्रयोग किया जा सकता है। वर्तमान समय में इनका प्रयोग सोनार (SONAR-Sound Navigation and Ranging) में किया जाता है।
इन सबके अतिरिक्त नैनो टेक्नालॉजी का भी इस प्रौद्योगिकी में विशेष महत्त्व है। नैनो टैक्नालॉजी डिवायसेस वर्तमान समय में हमारे संचार उपकरणों में प्रयोग किये जाने से इनके आकार तथा इनकी गुणवत्ता को परिवर्तित कर रहे हैं।
इस प्रकार भौतिकी हमारे आर्थिक विकास तथा प्रगति में एक मजबूत स्तम्भ के रुप में भूमिका निर्वाह कर रही है। भौतिकी में होने वाली नयी-नयी खोजें तथा नियम व सिद्धान्त हमारी प्रगति के महत्त्वपूर्ण आयाम हैं। इसलिए आवश्यक है कि इन खोजों एवं नियमों से निरन्तर भिज्ञ होते रहें जिससे हम प्राचीन तकनीक से आधुनिकतम तकनीक की ओर बढ़ सकें।

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