ज्ञान के विशेष क्षेत्र में सम्बन्धित विषय की क्रमबद्ध और व्यवस्थित जानकारी को ‘विज्ञान’ कहते हैं। विज्ञान का सम्बन्ध निश्चयात्मक बुद्धि से है और यह अनुभवों से उत्पन्न होता है। विज्ञान के अध्ययन का महत्त्व सिर्फ वैज्ञानिक सिद्धान्तों की जानकारी तक ही सीमित नहीं है। वस्तुत: विज्ञान के नियमों और सिद्धान्तों के ज्ञान का वास्तविक लाभ इन्हें दैनिक जीवन-व्यवहार में प्रयोग करने से प्राप्त होता है। विज्ञान के वास्तविक प्रयोग के लिए प्राय: विद्यार्थी ‘इंजीनियरिंग’ या ‘अभियांत्रिकी’ के अध्ययन का विशिष्ट क्षेत्र चुनते हैं।
अपने अध्ययनकाल में, मैं विज्ञान का विद्यार्थी था। मैंने सन् साठ के दशक में मेरठ शहर के देवनागरी डिग्री कॉलेज में विज्ञान वर्ग के अन्तर्गत भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र तथा गणित विषयों के साथ बी०एस-सी० कक्षा उत्तीर्ण की थी। बी०एस-सी० करने के बाद अब मेरे सामने नौकरी की सही राह चुनने का प्रश्न था। मेरा अपना मन अध्यापन के क्षेत्र में जाने का था। मेरे पिता स्व० श्री नरसिंह दास स्वामी आबकारी विभाग में सहायक आयुक्त थे। वे मुझे सरकारी सेवा में भेजना चाहते थे तथापि मैंने अपने मित्र से प्रेरणा पाकर इंजीनियरिंग में प्रवेश का लक्ष्य बनाया।
यह वर्ष 1964 था और इंजीनियरिंग में प्रवेश पाने के लिए बी.एस-सी. उत्तीर्ण किये हुए अभ्यर्थियों के लिए सीधे द्वितीय वर्ष में प्रवेश पाने हेतु मात्र 21 स्थान थे। आई०आई०टी०, रुड़की की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने पर मुझे सिविल इंजीनियरिंग में प्रवेश मिल गया। रुड़की विश्वविद्यालय में जाकर मेरे अन्तर्मन में आभास महसूस हुआ कि मैं जीवन में अपने इच्छित लक्ष्य के समीप हूँ, जहाँ मुझे राष्ट्र और समाज की बेहतर सेवा का मौका मिल सकेगा।
वैसे तो मैंने जिस भी प्रतियोगी परीक्षा में भाग लिया, ईश्वर की कृपा से, सभी में मेरा चयन हुआ और अच्छी सफलता प्राप्त की। वर्ष 1969 में उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग के अन्तर्गत मुझे सहायक अभियंता के पद पर पहली नियुक्ति मिली थी। प्राय: पचास वर्ष के सेवाकाल में मेरा दीर्घ अनुभव भवन निर्माण, सेतु निर्माण, मार्ग निर्माण, आवासीय कॉलोनी, उद्योगशाला तथा एअरपोर्ट निर्माण आदि विभिन्न विधाओं के अन्तर्गत रहा है। मैंने लोकनिर्माण के प्रत्येक आयाम में निपुणता प्राप्त करने का भरपूर प्रयास किया। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जवाहर भवन की बहुखण्डीय इमारत का निर्माण राज्य शासन के लोक निर्माण विभाग (PWD) द्वारा कराया गया था। मैं इस भवन के निर्माण कार्य में संलग्न था और मुझे इसका विशिष्ट अनुभव प्राप्त हुआ। आज जब भी कभी मैं जवाहर भवन के सामने से गुजरता हूँ तो रामांच से भर उठता हूँ।
द्वारा कराया गया था। मैं इस भवन के निर्माण कार्य में संलग्न था और मुझे इसका विशिष्ट अनुभव प्राप्त हुआ। आज जब भी कभी मैं जवाहर भवन के सामने से गुजरता हूँ तो रामांच से भर उठता हूँ।
इंजीनियरिंंग में बहुत सारी राहें आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं। आवश्यकता है एकाग्रचित्त होकर भरपूर प्रयास करने की, व सकारात्मक सोच का
वर्ष 2006 में उ०प्र० लोकनिर्माण विभाग के कार्यकारी मुख्य अभियंता के पद से सेवानिवृत्ति के उपरान्त आजकल मैं भारत सरकार के ‘राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण’ की योजना के अन्तर्गत ‘टीम लीडर’ की भूमिका में सेवा प्रदान कर रहा हूँ। एन०एच०-24 मार्ग पर ‘डासना से हापुड़’ तक राजमार्ग को चार से छ: लेन में बदला जा रहा है। भविष्य में यातायात सम्बन्धी असुविधाओं से बचने की दृष्टि से पिलखुआ आबादी क्षेत्र में 5.85 किमी का उपरगामी निर्माण कार्य लगभग पूर्णता पर है। योजनान्तर्गत निर्माण कार्य की श्रेष्ठता के लिए भारत सरकार के केन्द्रीय मंत्री (यातायात) माननीय नितिन गडकरी जी ने टीम को वर्ष 2019 का ”Golden Award for Innovation Technique” पुरस्कार प्रदान किया है।
भारत विकासोन्मुख देश है। विकास एक बहुमुखी प्रघटना है जिसके विभिन्न आयाम हैं। प्राचीनकाल से आज तक मानव जाति के विकास में किसी न किसी रूप में इंजीनियरिंग की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसलिए इंजीनियरिंग को कैरियर के विकल्पों में सर्वोपरि व कालजयी कहा जा सकता है। समय के गतिवान पथ पर अवश्य ही, इंजीनियिंरग की विधा के स्वरूप बदलते जायेंगे लेकिन नि:सन्देह इसकी महत्ता भी बहुगुणित होती जायेगी।
हमारे देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। कमी है मात्र प्रतिभाओं को सही दिशा में प्रेरित करने वाले निर्देशन तथा परामर्श की। विद्यार्थियों को चाहिए कि वे माध्यमिक स्तर पर पहुँचकर अपने भविष्य की राह के लिए जागरूक हो जायें और अपने लिए उपयुक्त कैरियर का चुनाव करने की ओर प्रवृत्त हों।
इंजीनियिंरग के क्षेत्र में आपके लिए मैं एक उदाहरण हो सकता हूँ। सहायक अभियंता से मुख्य अभियंता तक सफलता की मेरी विकास गाथा प्रेरित करती है कि यदि मैं अभियांत्रिकी के व्यवसाय में अपना मार्ग बना सकता हूँ तो अन्य बच्चे क्यों नहीं? 21वीं सदी में कैरियर का विकल्प तलाशते आज के बच्चे संसाधनों के मामले में मेरे कालखण्ड से बहुत आगे हैं। वर्तमान में (10+2) (+3) से सम्बद्ध विद्यार्थी इंटरनैट में गुगल के माध्यम से, समाचार पत्रों में कैरियर कॉलम्स से, ईमेल द्वारा तथा सोशल मीड़िया आदि की मदद से स्वयं उस कैरियर के बारे में विषद जानकारियाँ सुगमता से प्राप्त कर सकते हैं, जिस दिशा में वे कैरियर की तलाश करना चाहते हैं। संसाधनों की दृष्टि से दुनिया बहुत आगे बढ़ चुकी है।
21वीं सदी में इंजीनियिंरग के क्षेत्र से जुड़े बहुत सारे कैरियर उपलब्ध हैं; यथा—सिविल इंजीनियिंरग, मैकेनिकल इंजीनियरिंंग, केमिकल इंजीनियरिंंग, बायो मेडिकल इंजीनियरिंंग, कम्प्यूटर साइंस व इंजीनियरिंंग, कम्यूटर एप्लीकेशन, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स व कॉम्युनिकेशन इंजीनियरिंंग, रोबोटिक्स, नैनो टेकनोलॉजी, आई.ओ.टी, आर्टीफिशियल इण्टेलीजेंस, मशीन लर्निंग, इत्यादि। इंजीनियिंरग में बहुत सारी राहें आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं। आवश्यकता है एकाग्रचित्त होकर भरपूर प्रयास करने की, सकारात्मक सोच लेकर दृढ़निश्चय और कठोर संकल्प के साथ आगे बढ़ने की!
सिविल इंजीनियरिंंग की विधा को कैरियर बनाकर मैंने आजीवन राष्ट्र की सेवा का प्रण लिया है। मैं इसका समूचा श्रेय स्नातक स्तर पर डी०एन० कॉलिज, मेरठ और आई०आई०टी० रुड़की के अन्तर्गत अपने विद्वान गुरुजनों को अर्पित करुँगा जिनके निर्देशन तथा अनुकम्पा से विज्ञान विषयों के प्रति मेरा अनुराग बढ़ता गया और अर्जित ज्ञान को मैं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में रूपान्तरित कर सका।